सारसी छ्न्द- [१६+११=२७]
सारसी छ्न्द- [१६+११=२७] सारसी छ्न्द चौपाई [मात्रभार १६] और दोहा के सम चरण [मात्रभार ११ ] के संयोग से निर्मित मधुर गेय -सारसी छ्न्द सम चरण तुकांत होता है
सारसी छ्न्द- सामंत ,आप , आल , ओर , आर , आल
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आज़ादी की बातें करते, सुविधा करे विलाप ।
पाँच साल में नेता दिखते, कैसा क्रिया कलाप।
छतरी में बालक को देखो , कैसा है बदहाल ।
खेल कूद की उमर कयामत, देख हौसला बाल ।
धीरे -धीरे कदम बढ़ाए , कमर नीर हर ओर ।
अनुपम साहस यही परीक्षा , नहीं ग़रीबी छोर ।
जीवन का साधन ले चलता , बाँस फूस घर द्वार ।
धरती उनकी माँ का आँचल , टुटही खटिया प्यार ।
लिखना यार बहुत मै चाहूँ , कलि युग माया जाल ।
अपनों को अपनों ने लूटा, जहर द्वेष जस व्याल ।
राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी