Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Dec 2023 · 5 min read

#सामयिक_विमर्श

#सामयिक_विमर्श
■ आपकी तस्वीर आपकी पहचान
【प्रणय प्रभात】
साहित्य की तरह मानवीय जीवन भी विविध रसों का केंद्र है। जिसे हम “विविध आयामों का समुच्चय” भी कह सकते हैं। प्रत्येक रस के अपने स्थायी-अस्थायी भाव, विभाव और अनुभाव हैं। जो देश काल आर वातावरण के अनुसार स्वत: प्रकट होते रहते हैं। यह भाव ही मनोभाव कहलाते हैं। जिन्हें व्यक्त करने से कोई भी अपने आपको रोक नहीं सकता। बशर्ते उसके पास एक अदद मंच, माध्यम या अवसर हो। यह बात आज की उस “आभासी दुनिया” पर सौ फीसदी सटीक साबित होती है। जिसमे आप और हम जी रहे हैं। आभासी दुनिया मतलब “सोशल मीडिया” जो कई फॉर्मेट के साथ आज दो तिहाई से कहीं अधिक लोगों के जीवन का हिस्सा बन चुका है।
इनमें फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम, ट्विटर जैसे तमाम प्लेटफॉर्म हमारी भावनाओं की सहज और बनावटी अभिव्यक्ति के माध्यम बन चुके हैं। जहां हम अपने समय का एक बड़ा हिस्सा खर्च करने वाले लोग अपने आवेगों-उद्वेगों का निस्तारण बेनागा करते दिखते हैं। एक नियत या अनियत अंतराल में की जाने वाली मौलिक या अमौलिक पोस्ट आपकी हमारी तत्कालीन स्थिति व मनोभावों की द्योतक होती है। वहीं पसंद की गई पोस्ट और उस पर दी गई प्रतिक्रिया भी आपकी अपनी रुचि, अरुचि या अभिरुचि को प्रकट करती है।
किसी पोस्ट पर आपकी सकारात्मक व नकारात्मक सोच से की संवाहक आपकी पोस्ट भी होती है और आपकी प्रतिक्रिया भी। फिर पोस्ट चाहे आपकी अपनी हो या आपके द्वारा साझा की गई हो। इसी तरह आपकी पसंद-नापसंद का पता उन समूहों, पृष्ठों और व्यक्तियों से भी चलता है, जिन्हें आप फॉलो या लाइक करते हैं। संभव है इन बातों की समझ तमाम लोगों को हो। हो सकता है कइयों को न भी हो। यह मानसिक व बौद्धिक स्तर का एक अलग विषय है।
बावजूद इसके बहुत कम लोग जानते होंगे कि उनके बारे में धारणा बनाने की सोच को आधार देने का काम कौन करता है? जो मित्रों या अनुगामियों के मन मानस में उनकी एक छवि को गढ़ने का भी माध्यम बनता है। आज की बात हम बस इसी को लेकर करने जा रहे हैं। ताकि आप अवगत हों, विचार करें और समयोचित बदलाव या सुधार का निर्णय ले सकें। सच्चाई यह है कि आपके व्यक्तित्व और कृतित्व का साझा दर्पण आपकी अपनी “डीपी’ (फोटो) होती है। जिसमे आपकी अपनी छवि स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। आपकी डीपी और टाइम-लाइन की “कव्हर-इमेज” न केवल आपका परिचय देती है, बल्कि उसे देखने वालों की मानसिकता पर पहला व सीधा प्रभाव भी डालती है। जिसका तात्कालिक आभास हमे मित्रता प्रस्ताव आने के साथ ही हो जाता है। ठीक यही अनुभूति उसे भी अवश्य होती होगी, जिसे हम मैत्री प्रस्ताव भेजते हैं।
“डीपी” व “कव्हर-इमेज” देखते ही सामने वाले के मन मे आपके प्रति एक धारणा का निर्माण होता है। ठीक वैसे ही, जैसे आपके मस्तिष्क में किसी की छवि बनती है। जिस पर भावी व्यवहार निर्भर करता है। अमूमन, यही भूमिका कव्हर-फोटो एलबम की भी होती है। जो आपकी दशा और दिशा के बारे में इंगित करते देर नहीं लगाता। बाक़ी कसर उन पंक्तियों से पूरी हो जाती है, जिन्हें “बायो” कहते हैं। यह एक छोटा सा आत्मकथ्य होता है और आपकी क्षमता व बौद्धिक स्तर को उजागर करता है। किसी की डीपी व बायो को लेकर मानस में तुरंत उपजने वाली धारणाओं का जो अध्ययन किया गया है, उसका निष्कर्ष बेहद रोचक है। सोचा कि आपको भी अपनी सोच व शोध से अवगत कराया जाए। कुछ तथ्यों को लेकर आपके मत भिन्न हो सकते हैं जो आपका विशेषाधिकार है और उसके प्रति मैं आदर के भाव रखता हूँ।
मेरा अपना मानना है कि “सूरत और सीरत” के बीच कोई मेल नहीं। किसी का चेहरा-मोहरा, रंग-रूप, कद-काठी ऊपर वाले (ईश्वर) की देन है, जिसे नीचे वाले (अभिभावक) तराशते हैं। वाह्य छवि पर कुछ असर रहन-सहन, निजी पृष्ठभूमि, पारिवारिक स्थिति, शिक्षा-दीक्षा, संगत, संस्कार आदि का भी होता है। आंतरिक स्वरूप पर इन तत्वों से अधिक प्रभाव निज स्वभाव का होता है। जिस पर सारे सम्बन्ध निर्भर करते हैं। आंतरिक स्वरूप को बाहर की दुनिया के सामने रखने का काम आपकी डीपी आपके चाहे-अनचाहे, जाने-अंजाने सबसे पहले करती है। जो आज के अन्वेषण-विश्लेषण का आधार है। अध्ययन से पता चलता है कि अपनी ख़ुद की शक्ल से ज़्यादा भरोसा सेलीब्रेटीज की सूरत पर करने वाले आत्मविश्वास के मामले में कमज़ोर होते हैं। जो काल्पनिक उड़ान व दिखावे को अहमियत देते हैं। इसी तरह डीपी वाली जगह खाली छोड़ने वाले सामान्यतः अंतर्मुखी और छल-पसंद होते हैं। जिन्हें एक रहस्य के आवरण में रहना भाता है। आए दिन डीपी बदलने वाले अस्थिर चित्त वाले होते हैं, जो घोर महत्वाकांक्षी भी हो सकते हैं। भयावह, वीभत्स और विध्वंसात्मक दृश्यों को डीपी बनाने वाले बहुधा व्यसनों के आदी व असामान्य होते हैं। जिनकी मानसिकता अपराध-पसंद होती है।
इसी तरह भावनात्मक, संदेशात्मक, विचारात्मक व रोमांचक चित्र लगाने वाले अपने मनोभावों को प्रकट करते हैं। जिनमे कुछ की सोच अपनी छवि को किसी विशेष प्रयोजन के लिए खास साबित करने की भी हो सकती है। धार्मिक चित्रों को डीपी बनाने वालों में कम से कम दो तिहाई लोग आडंबरी होते हैं। जिनके आचार-विचार और व्यवहार में समानता का प्रतिशत बेहद कम होता है। इसी तरह उत्साही, ऊर्जापूर्ण, हताश, निराश, कुंठित, हिंसक, आक्रामक, कट्टर, कुटिल, यथार्थ-प्रेमी, थोथे आदर्शवादी, सामाजिक, असामाजिक, विकारी और निर्विकारी लोग भी डीपी व बायो के कारण पहचाने जा सकते हैं। बाक़ी काम पोस्ट्स और कमेंट्स कर देते हैं।
उक्त विषय एक आलेख से परे शोध का विषय है। जो आभासी दुनिया के वाशिंदों और उनके बीच बनते संबंधों के भविष्य के लिए काफी मददगार हो सकता है। आप भी दैनिक जीवन मे इस तरह के शोध को जारी रख कर कथित मित्रता व संबंधों के नाम पर होने वाले छल, षड्यंत्र और अवसाद से बच सकते हैं। लेखनी को विराम देने से पहले एक और खुलासा करना मुनासिब मानता हूँ। बेहद सुंदर व मासूमियत से भरपूर चेहरों वाली आईडी से दूर रहें। यह छद्म आईडी कथित “एस्कॉट सर्विस” (देह व्यापार) व “हनी ट्रेप” से जुड़ी “कॉल-गर्ल्स” या उनकी आड़ लेने वाले शातिर सायबर अपराधियों की हो सकती है। जो झूठे नाम, उपनाम व लोकेशन सहित “कुमारी” जैसे शब्द का उपयोग कर आपको “जॉब ऑफर्स ₹” या “वर्क फ्रॉम होम” के झांसे देकर बड़ा आर्थिक, सामाजिक या चारित्रिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। सामान्यतः “लॉक्ड” और विवरण-रहित आईडी व अकाउंट वालों से भी दूरी रखें। डीपी, बायो और कव्हर फोटो के अलावा पोस्ट्स व प्रोफ़ाइल में दी गई जानकारी भी आपको व्यर्थ की झंझटों से बचा सकती है। जो आज के दौर में आपकी चेतना के लिए एक बड़ी व कड़ी चुनौती है। उम्मीद है सतर्क रहेंगे और जागृति लाने का प्रयास करेंगे। मेरी तरह, बेनागा, जनहित में।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

1 Like · 238 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
गणेश वंदना
गणेश वंदना
Sushil Pandey
बेबस अबला क्या करे,
बेबस अबला क्या करे,
sushil sarna
किसान मजदूर होते जा रहे हैं।
किसान मजदूर होते जा रहे हैं।
रोहताश वर्मा 'मुसाफिर'
दूरी सोचूं तो...
दूरी सोचूं तो...
Raghuvir GS Jatav
Virtual vs. Real: The Impact on Brain Development of Children in Modern World
Virtual vs. Real: The Impact on Brain Development of Children in Modern World
Shyam Sundar Subramanian
मै ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे हालात और मै
मै ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे हालात और मै
पूर्वार्थ
प्रेरक गीत
प्रेरक गीत
Saraswati Bajpai
उसका शुक्र कितना भी करूँ
उसका शुक्र कितना भी करूँ
shabina. Naaz
उपहास ~लघु कथा
उपहास ~लघु कथा
Niharika Verma
" इन्तेहाँ "
Dr. Kishan tandon kranti
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
Keshav kishor Kumar
अनगिनत सवाल थे
अनगिनत सवाल थे
Chitra Bisht
क्योंकि वह एक सिर्फ सपना था
क्योंकि वह एक सिर्फ सपना था
gurudeenverma198
मैं निकल पड़ी हूँ
मैं निकल पड़ी हूँ
Vaishaligoel
बरसात का मौसम तो लहराने का मौसम है,
बरसात का मौसम तो लहराने का मौसम है,
Neelofar Khan
क़िरदार अपनी आंखों में झलक उठता है,
क़िरदार अपनी आंखों में झलक उठता है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
संघ के संगठन के सम्बन्ध में मेरे कुछ विचार 🙏संगठन में नियम न
संघ के संगठन के सम्बन्ध में मेरे कुछ विचार 🙏संगठन में नियम न
ललकार भारद्वाज
धर्म की खूंटी
धर्म की खूंटी
मनोज कर्ण
फागुन होली
फागुन होली
Khaimsingh Saini
"मन की खुशी "
DrLakshman Jha Parimal
*तू कौन*
*तू कौन*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
स्तंभ बिन संविधान
स्तंभ बिन संविधान
Mahender Singh
3692.💐 *पूर्णिका* 💐
3692.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
#दिवस_विशेष-
#दिवस_विशेष-
*प्रणय*
हर बला से दूर रखता,
हर बला से दूर रखता,
Satish Srijan
मन की बात न कहें, तो मन नहीं मानता
मन की बात न कहें, तो मन नहीं मानता
Meera Thakur
*प्राण-प्रतिष्ठा (दोहे)*
*प्राण-प्रतिष्ठा (दोहे)*
Ravi Prakash
शब्दों की मशाल
शब्दों की मशाल
Dr. Rajeev Jain
आसमान से अब मत पूछो,
आसमान से अब मत पूछो,
Bindesh kumar jha
सुहागन का शव
सुहागन का शव
अनिल "आदर्श"
Loading...