साध और संगत…..खुद की भली,
परिणाम चाहिए,
सम्मोहन से बचे,
स्वावलंबी बने,
स्वतंत्रता की पहली शिक्षा,
आप्त-वचन किसी महापुरुष के वचन हैं,
आपके नहीं,
उनका अंध-अनुकरण या अंध-अनुशरण की बजाय उसका अनुभव लेकर स्वयं सिद्ध करें,
अमन-चैन,
सुख शांति से रहने के लिए,
सिर्फ खुद का निरीक्षण मूलभूत,
जाति-धर्म,
पंथ-सम्प्रदाय आवश्यक नहीं,
विचारों में समानता एक सहजता,
विचारों में विरोध का तात्पर्य दुश्मनी नहीं,
बदलाव एक कुंठा हिंसा,
अपने को विशिष्ट साबित करने की प्रवृति
विनाशकारी,
यथा उचित दूरी जो समझ से आती है,
इन सब अनहोनी से बचा सकती है,
यह शिक्षा वर्तमान को स्वर्ग बनाने में सार्थक सिद्ध हो सकती है,
स्वस्थ्य रहने के लिए किसी पद्धति
यम,नियम की आवश्यकता से ज्यादा
सहज होना,विश्राम ही काफी है,
उत्सुकता से दूरी ही जरूरी,
निष्कर्ष:-
लोगों से सुना है,
समर्थ से सफलता,
व्यर्थ से असफलता,
सफल होने के लिए कुछ करना पड़ता है,
असफलता खुद आ जाती है,
जबकि सफलता के लिए भी कुछ नहीं करना,
सिर्फ स्वयं को जानना है,पहचानना है,निजता में जीना है,सिर्फ स्वावलंबी होना है,
डॉ महेन्द्र सिंह,
महादेव क्लीनिक,
मानेसर व रेवाड़ी,
हरियाणा,