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2 Jul 2022 · 6 min read

*सादगी के हमारे प्रयोग (हास्य व्यंग्य )*

सादगी के हमारे प्रयोग (हास्य व्यंग्य )
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सादगी का महत्व समझते हुए हमने सोचा कि चलो ,जीवन में सादगी को अपनाया जाए ! मोहल्ले में एक नेता जी को दिन भर सफेद पेंट और सफेद शर्ट प्रेस करी हुई पहने हुए देखते थे । हमने सोचा कि यह सादगी के प्रतीक हैं । उनके पास गए । कहा “हम जीवन में सादगी को अपनाना चाहते हैं। बताइए ,क्या करना होगा ?”
नेता जी ने हमारी तरफ नजर डाली और कहने लगे “सादगी को अपनाना तुम्हारे बस की बात नहीं है । यह बहुत खर्चीला आइटम है ।”
हमें बड़ा आश्चर्य हुआ । हमने प्रश्न किया “सादगी तो बहुत सस्ती मानी जाती है । यह खर्चीली कब से हो गई ? ”
नेता जी बोले “मेरी पैंट – शर्ट देख रहे हो ! सुबह दस बजे नहाकर तैयार होता हूं। धुली हुई और प्रेस की हुई पेंट-शर्ट पहनता हूं। ग्यारह बजे मीटिंग अटेंड करता हूं । उसके बाद कार्यकर्ताओं से मिलता हूं । दोपहर का भोजन करने के बाद जब सोता हूं और पुनः उठकर पाँच बजे की मीटिंग में जाता हूं तो नई पेंट-शर्ट पहनता हूं । पुरानी पेंट और शर्ट धोबी को धुलने के लिए चली जाती है । शाम को गतिविधियों से निबट कर वापस आता हूं । रात्रि नौ बजे या तो किसी राजनीतिक विचार-गोष्ठी में हिस्सा लेना होता है या फिर किसी मनोरंजक कार्यक्रम का उद्घाटन करना पड़ता है । तीसरी बार पुनः नई ड्रेस पहनी जाती है । मैं पेंट शर्ट पहनता हूं ,जबकि हमारे कुछ साथी खद्दर का कुर्ता-पाजामा पहनते हैं । लेकिन खर्चा एक सा-ही आता है । क्या इतना खर्च कर सकोगे ? ”
नेता जी ने जब प्रश्नवाचक मुद्रा में हमें देखा तो हमारा सादगी का उत्साह ठंडा पड़ गया। हमने मरियल स्वर में कहा “हमें सफेद कुर्ता पाजामा तथा सफेद पेंट शर्ट देखने में अच्छी लगी तो हमने सोचा इसे पहनना शुरू कर दिया जाए और सादगी वाले समूह में शामिल हो जाएँ।.लेकिन हम तो एक दिन में तीन बार क्या ,दो बार भी कपड़े बदलने के मूड में नहीं हैं। उनकी धुलाई का खर्चा कौन बर्दाश्त करेगा ? ”
अब नेताजी रहस्य भरी मुस्कुराहट चेहरे पर भी बिखेरने लगे । बोले “बच्चू ! हमने तो पहले ही कहा था कि यह सादगी का खेल बहुत महंगा है। फिर बार-बार कपड़े धुलेंगे तो सिर्फ धुलाई का खर्च ही ज्यादा नहीं होगा बल्कि फटेंगे भी ज्यादा और नए सिलवाने भी अधिक संख्या में पड़ेंगे। सोचो ,खर्चा कहां तक बर्दाश्त करोगे ! ”
सादगी की कड़वी सच्चाइयों का सामना करने के बाद हमने कपड़ों के मामले में सादगी बरतने की योजना त्याग दी और जिस तरह नीले – हरे – पीले कपड़े पहनते थे वैसे ही पहनते रहे । सादगी का कीड़ा मगर दिमाग में कुलबुलाता रहा ।
एक दिन हमने घर के सारे दरवाजों पर सफेद पेंट कराने का विचार बनाया । सोचा कपड़ों के मामले में न सही , दरवाजों पर पेंट के मामले में ही सादगी को अपना लेते हैं। मगर यह विचार भी सफल नहीं हो पाया क्योंकि घर पर राय यही बनी कि सफेद रंग की मेंटेनेंस संभव नहीं है । हमारी भी समझ में आ गया कि यह कड़वी दवा है ,जिसे पीने से कोई फायदा नहीं।
सादगी का हमारा प्रयोग असफलताओं के बाद भी नहीं रुका। एक दिन हमने निश्चय किया कि हम कार अथवा मोटरसाइकिल या बाइक स्कूटर आदि का प्रयोग बंद कर देंगे और एक साधारण-सी साइकिल पर शहर में घूमा करेंगे । परिणामतः.हमने एक सेकंड हैंड साइकिल खरीदी । सेकंड हैंड इसलिए क्योंकि नई साइकिल खरीदने से सादगी का माहौल नहीं बन रहा था । लिहाजा हम सेकंड हैंड साइकिल पर बैठकर उसे मजे से चलाते हुए शहर में घूमने लगे । मगर तीन-चार दिन ही बीते होंगे कि इस बार भी सादगी के हमारे प्रयोग को लोगों की नजर लग गई । हमारे पास हमारे कई शुभचिंतक पधारे । आकर हमसे पूछने लगे “भाई साहब ! क्या हुआ ? सुना है ,बिजनेस में घाटा हो गया या आपका पैसा व्यापार में मारा गया ! सुनते हैं अब आप कंगाल हो गए हैं ? ”
हमें बड़ा ताज्जुब हुआ । हमने उन आगंतुकों से प्रश्न किया “हमने सुना तो था कि अफवाहों के सिर पैर नहीं होते हैं लेकिन आज प्रत्यक्ष देख लिया । यह सब बेसिर-पैर की बातें आपको किसने बता दीं? ”
वह बोले “बताता कौन ? यह सब तो आपके सेकंड हैंड साइकिल पर बैठकर शहर में भ्रमण करने से ही जगजाहिर हो रहा है । आदमी जब गरीबी में आ जाता है तब कार और स्कूटर से उतरकर सेकंड हैंड साइकिल का हैंडल संभालता है । ”
हम गहरी सोच में पड़ गए । हमें अनुमान भी नहीं था कि चीजें इतना विकृत रूप ले लेंगी और इस दिशा में मुड़ जाएंगी कि हमारी हैसियत पर ही प्रश्नचिन्ह लगने शुरू हो जाएंगे ? तुरंत हमने सेकंड हैंड साइकिल को थर्ड हैंड साइकिल के रूप में औने-पौने दाम में बेच कर उस से छुट्टी पाई और फिर से अपनी कार का स्टेरिंग थाम लिया । इस तरह हमने “डैमेज कंट्रोल” करने की पूरी-पूरी कोशिश अपनी तरफ से की। यद्यपि जो नुकसान होना था वह तो हो ही गया ।
हमारे सिर से सादगी का भूत फिर भी नहीं उतरा । जब हमारी शादी हुई तो हमने कहा कि विवाह में बैंड-बाजा बेकार की बातें हैं । इन सब की कोई आवश्यकता नहीं होती है ।”
लड़की वालों तक जब बात पहुंची ,तब उनकी पहली प्रतिक्रिया यह थी कि” बैंड-बाजे का खर्च लड़के वाले करते हैं ,अतः दामाद जी इस खर्च से पीछा छुड़ाने का नाटक न करें ।”
हमने स्पष्ट कह दिया “यह नाटक नहीं, सादगी का सैद्धांतिक प्रश्न है। हम बैंड-बाजा किसी हालत में नहीं करेंगे । ”
ससुर जी को पहले तो शंका हुई कि कहीं दामाद जी का दिमाग का एक पेंच हिला हुआ तो नहीं है ? लेकिन जब उन्होंने देखा कि बाकी सारी बातें ठीक हैं, बस केवल इन्हें सादगी का दौरा पड़ता रहता है ,तब उन्होंने किसी तरह अपने खर्चे से बैंड-बाजे का इंतजाम किया और हमारी सादगी को दूर से “जय राम जी की” कर लिया ।
सादगी का हमारा अगला प्रयोग अभी बाकी था । हमने घरवालों से कहा “प्रीतिभोज में धन की बर्बादी होती है। व्यर्थ ही एक हजार लोगों को बुलाकर लोग दावत करते हैं । इसके स्थान पर सादगी से विवाह होना चाहिए अर्थात किसी को न बुलाया जाए, न निमंत्रण पत्र बांटे जाएं।”
घर वालों ने अब तक समझ लिया था कि इस लड़के को सादगी का शौक चर्राता रहता है। अतः इसको अपना काम करने दो । मगर इस चक्कर में परिणाम स्वरूप पूरे शहर से हमारी लड़ाई हो गई। अनेक लोगों ने हमारे मुंह पर आकर यह स्पष्ट कह दिया कि हम आपको अपना बहुत निकट का व्यक्ति समझते थे लेकिन आज पता चला कि आपकी तो विवाह-सूची में एक समय का भोजन करने वालों तक में भी हमारा नाम नहीं है । अब काहे की हमारी आपकी रिश्तेदारी ,काहे का सामाजिक मेलजोल और काहे की निकटता ।
देखते ही देखते हमारा सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो गया । जिन लोगों ने अपने तीन लड़कों की शादियों में हमें सस्नेह सपरिवार निमंत्रण पत्र दिया था ,अब वह चौथे लड़के की शादी में हमसे किनारा कर गए । हमारे गहरे दोस्त हमारे सामने से अपनी शादी के निमंत्रण-पत्रों की गड्डी हाथ में लेकर निकलते थे , मगर हमारी तरफ उपहास की दृष्टि से देखते थे और हमें बिना निमंत्रण-पत्र दिए मूछों पर ताव देते हुए आगे बढ़ जाते थे । हम अलग-थलग पड़ गए और रह-रहकर उस दिन को कोसने लगे ,जब हमें अच्छे-खासे बैठे-बिठाए सादगी की उचंग उठी थी और हमने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली थी।
अब हमने संसार की वास्तविकता को समझ लिया है और यह निश्चय कर लिया है कि हम भूलकर भी सादगी के चक्कर में नहीं पड़ेंगे । यह सब बड़े लोगों के चोंचले हैं । हमारे लिए तो जिंदगी जीने का नाम है । इसलिए जैसे सब लोग जिंदगी जी रहे हैं ,हम भी जी लेंगे। सादगी को टाटा – बाय – बाय ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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