शरद ऋतु
3-शरद का चंद्रमा बिखेरता है चांदनीं।
सितारों से टका आंचल लगे है बांधनीं।
शुभ्र, धवल नभ धरा को बाहों में भरता,
हवाएं भी छेड़े जा रही हैं कोई रागिनी।
शीत ऋतु कोहरे की चादर ओढ़ गयी ।
फूलों पर ये सुंदर तितलियाँ डोल गयीं।
पेड़ों से धूप जब छन – छन कर झांकतीं ,
शबनम की बूंदें पत्तियों से बरस जातीं।
खुश होकर पंछी उड़ते , चहक भर जाती
धरा पर बिछी घास की चादर भीग उठती।
शरद की सांझ होते ही अंधेरा घिर आता,
सूरज अपने घर को जल्द ही चला जाता।
बिखरी चांदनी तुम्हारे आने का संदेश देती,
मिलन की सोच तन ,मन में खुशबू भरती।
तुमसे मिलने के पहले सीधी सी जिंदगीें थी,
तुम्हारी ओर मोड़ गयी, ये प्यार की बंदगी थी।
डॉअमृता शुक्ला