साज सजाए बैठा जग के, सच से हो अंजान।
साज सजाए बैठा जग के, सच से हो अंजान।
हिंसा के पथ पर चल करता, अपना ही नुकसान।
सबमें निज को निज में सबको, देख मनुज नादान।
किस खातिर ये पाँव पसारा, ले फिर ये संज्ञान।
© सीमा अग्रवाल
साज सजाए बैठा जग के, सच से हो अंजान।
हिंसा के पथ पर चल करता, अपना ही नुकसान।
सबमें निज को निज में सबको, देख मनुज नादान।
किस खातिर ये पाँव पसारा, ले फिर ये संज्ञान।
© सीमा अग्रवाल