साज़िश
पण्डित शील भद्र स्वस्थ होकर गांव लौट आये सबसे पहले वो रियासत मिंया के घर गए उनके यहां जल ग्रहण किया और रियासत मियां के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किया फिर घर आये ।
कुछ दिन बाद उन्होंने अपने यहॉ दुर्घटना से बचने एव स्वस्थ होने की खुशी में अखंड रामायण का पाठ रखा जिसमे उन्होंने रियासत मियां को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गांव वालों के समक्ष अपनी भूलो को स्वीकार करते हुए उन्होंने रियासत के सहयोग एव मानवीय संवेदनाओं की सराहना करते हुए अपनी पिछली भूलो के लिए खेद व्यक्त किया गांव वालों में भी प्रसन्नता की लहर दौड़ पड़ी उनको भी समझ मे आ गया कि पण्डित शीलभद्र को देर से ही सही अक्ल आयी और धर्म के वास्तविक मर्म को समझ लिया।
कुदरत और उसकी कायनात अपने वंदो को अपनी कसौटी पर सदैव कसते रहते है पण्डित शीलभद्र और रियासत के बीच समझ सामंजस्य कायम होने से गांव वालों ने एक अजीब सुकून का एहसास हुआ ।
पण्डित शीलभद्र का बेटा राघव और रियासत का बेटा रहीम एक दूसरे के अजीज बोले तो खास दोस्त थे दोनों की दोस्ती में तब कोई फर्क नही पडा जब पण्डित शीलभद्र और रियासत के बीच धर्म के नाम पर नफरत थी ।
राघव और रहीम की उम्र भी समान थी दोनों बचपन से साथ साथ पढ़ते भी थे दोनों की दोस्ती मशहूर थी दोनों ने बी ए में एक साथ दाखिला लिया डिग्री कॉलेज में भी उनकी दोस्ती के चर्चे आम थे ।
समय कि कसौटी पर दोनों की दोस्ती की गहराई कि परख शायद होनी थी डिग्री कालेज में एक छात्र था मस्तान उसका पहनावा एव आचार व्यवहार किसी मस्जिद के मौलवी की तरह से था वह कॉलेज के मुस्लिम छात्रों को अक्सर एकत्र करता और कुरान की आयतें एव इस्लाम के वसूलो की तकरीर करता ।
विद्यालय प्रशासन को धार्मिक मामले में हस्तक्षेप में कोई रुचि नही थी अतः उसने मस्तान के धार्मिक आचरण के प्रवाह को कभी गम्भीरता से नही लिया लेकिन मस्तान का मकशद ही कुछ और था वह तो मुस्लिम नौवजवानो का एक ऐसा समूह विकसित कर रहा था जो धर्म के नाम पर किसी हद तक कुर्बानी दे सके इसके लिए मुस्लिम नौजवानों के समूह के सदस्यों के घर पर इस्लामिक तकरीर एव मिलाद के कार्यक्रमो का आयोजन करता जिसका मकसद था नौजवानों के परिवार वालो को भी बैचारिक रूप से अपने मकशद में सम्मीलित करना।
मस्तान का इस्लामिक समूह रोज एक नए मोकाम पर पहुंचता मजबूत होता जा रहा था विद्यालय प्रशासन एव सामान्य प्रशासन मस्तान के दीर्घकालिक मंसूबो के प्रति बेखबर था मस्तान के समूह में रहीम भी सम्मिलित था लेकिन राघव को दोस्त के अपने धार्मिक सोच एव सक्रियता में कोई परेशानी नही थी।
मस्तान ने कॉलेज के नौजवानों के मार्फ़त उनके परिबारो में भी पहुंच बना लिया और इस्लामिक कट्टरता का संदेश देने में सफल रहा वैसे भी इस्लाम की खूबसूरती एव खासियत उसके मानने वालों का धर्म के प्रति चेतना ,सक्रियता, संकल्प , त्याग और बलिदान ही है ।
जो कोमल भवनाओं के नव जवानों के जज्बात को अधिक प्रभावित करता है किसी भी समाज धर्म जाती के नव जवानो की भावनाओं में अपरिपक्वता होती है और वह सीखने एव खोजने के पथ पर मार्गस्त होती है यही वह समय है जब किसी भी नौजवान के दिल दिमाग मे कोई भी स्थाई भाव का बीजारोपण किया जा सकता है जो उस नौजवान के विकास के साथ बड़े बृक्ष का आकार ले सके ।
मस्तान इसी उद्देश्य के चलते मुस्लिम नौजवानों के मस्तिष्क को दिशा एव दृष्टि दे रहा था।
समय बीतता गया रहीम और राघव की दोस्ती पर मस्तान के सांगठनिक प्रसार का कोई प्रभाव नही पडा एक दिन कॉलेज छुटा सब छात्र कॉलेज कैम्पस में निकले अपने अपने घर जाने के लिए तब तक मस्तान हाथ मे एक कागज का टुकड़ा लिए चिल्लाता हुआ आया कुरान की तौहीन ख़ुदा कि शान में गुस्ताखी कुरान का पन्ना राघव के सीट पर मिला राघव ने कुरान का पन्ना फड़ा है।
इतना सुनते ही सारे मुस्लिम नौजवानों में उत्तेजना एव धार्मिक संवेदनाओं का इतना जबरजस्त सांचार हुआ कि पूरे कालेज परिसर में अफरा तफरी मच गई रहीम भी उग्र हुजूम में शामिल अवश्य था मगर उसको नही मालूम था कि मस्तान उसी के दोस्त राघव पर ही कुरान फाड़ने का आरोप लगा रहा है ।
राघव को तो इस बात का कोई इल्म ही नही था वह निश्चिन्त कालेज के प्रांगण से घर जाने के लिए रहीम का इन्तज़ार ही कर रहा था तभी मुस्लिम छात्रों ने उसे घेर लिया और ऐसे उस पर आक्रामक हो गए जैसे सभी राघव के #खून के प्यासे#
ही हो रहीम ने मुस्लिम छात्रों द्वारा पीटते छात्र में अपने मित्र राघव के विषय मे सोचा तक नही था जब उसे पता लगा कि पिटता मौत के करीब उसका मित्र राघव ही है तो वह चिल्लाने लगा नही राघव सुबह मेरे साथ ही घर से कॉलेज आया है और आज तो वह नोट बुक तक नही लाया था कुरान के पन्ने कि बात तो कोरा झूठ है उधर
राघव को लहूलुहान मरणासन्न लेकिन उसपर आक्रमण का दौर थमने का नाम ही नही ले रहा था।
मस्तान ने जब रहीम कि बातों को गौर किया तब बोला नही दोस्त तुम दोस्ती के जज्बाती रौं में बोल रहे हो काफ़िर कभी इस्लाम का दोस्त नही हो सकता रहीम चिल्लाता रहा लेकिन उसकी आवाज नक्कारखाने की तूती बनकर रह गयी ।
इसी बीच वहां प्रशासनिक अमला और पुलिस दल पहुंचा उसने किसी तरह से राघव को निकाल कर अस्पताल पहुंचाया लेकिन तब तक बात कालेज परिसर से निकल कर गांव नगर की गलियों में फैल चुकी थी ।
दंगा फैल गया आगजनी पथराव सरकारी समाप्ति का नुकसान प्रशासन एक जगह नियंत्रण करता तो दूसरी जगह स्थिति अनियंत्रित हो जाति ऐसा लग रहा था जैसे मुस्लिम नौजवान# खून के प्यासे है #
और खून की नदियां बहा देंगे प्रशासन ने कर्फ्यू लगाया और किसी तरह से स्थिति को नियंत्रित किया और सिर्फ एक मस्तान को बन्दी बनाया कुछ दिन बाद हालात तेजी से सुधरने लगे राघव को बड़ी मुश्किल से बचाया जा सका ।
एक बार फिर रियासत एव अन्य मुस्लिम परिवारों ने राघव के इलाज के लिए कोई कोर कसर नही उठा रखी पण्डित शीलभद्र को खून दिया था रियाशत मियां ने तो राघव को खून दिया रहीम ने।
मामले की निष्पक्ष जांच से स्प्ष्ट जो तथ्य सामने आए वह बहुत चौकाने वाले थे कुरान के जिस पन्ने के फटने की बात पर दंगा हुआ था वह कुरान का पन्ना ही नही था वह था अरबी के किसी मैगजीन का पन्ना था।
विद्यालय प्रशासन ने अफरा तफरी में संवेदन शील एव भावनात्मक विषय पर तक्षण कुछ बोलना उचित नही समझा मस्तान के खुराफात के पीछे सिर्फ मकसद था रहीम राघव की दोस्ती दूसरे के,# खून का प्यासा#
बनाकर तोड़ना क्योकि रियसत एवं पण्डित शीलभद्र इलाके में इंसानियत की मिशाल बन मशाल जला रहे थे तो उनकी औलादे उंसे नए उत्साह से नए आयाम अध्याय के उजियार प्रदान कर रहे थे यही बात मस्तान को खटक रही थी मस्तान अपने मकशद में कामयाब तो नही हुआ।
हुआ यह कि जवार के लोगो मे जबजस्त और अनुकरणीय सौहार्द का वातावरण मस्तान जैसे लोंगो की कलई खुलने के अधार पर बना जो अविस्मरणीय है।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।