सागर से टकराता कौन
आधार छन्द- वीर/आल्ह (मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान- 31 मात्रा, 16-15 पर, अंत गाल।
समान्त- आता, पदान्त- कौन।
जीवन नश्वर, मृत्यु अटल है, सच्चा अर्थ सिखाता कौन।
सागर में जब लहरें उठतीं, सागर से टकराता कौन ।।
घर-घर में विघटन पसरा है, क्षीण हुई संवेदन शक्ति।
नफरत की आंधी में खोते, रिश्ते आज बचाता कौन।।
अपने-अपने धर्म सभी के, अपनी-अपनी सोच महान।
राष्ट्रधर्म के लिए प्रजा में, सच्ची अलख जगाता कौन ।।
झूठ प्रबल है न्याय न नीति, अवचेतन हो गया समाज ।
दुःख अगाध हृदय में होता, मन की पीर मिटाता कौन ।।
रचनाकार वही रचता है, जिससे सृष्टि रहे खुशहाल ।
किंतु मही पर पाप बढ़े तब, मानवधर्म निभाता कौन।।
जगदीश शर्मा सहज/