सागर की चांदनी
शीर्षक -सागर की चांदनी
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सागर किनारे लहरें, जो मचलती हुई
आती हैं।
जो दिल को हमारे, विभोर कर जाती हैं।।
देख विशाल तरंगों को,
लहरों का दम घुटने लगता।
मन करता खो जाएं हम,
लहरों से जोड़ कर नाता।।
पुष्पों से हो चाहे आंसू से,
माला पुष्पों की है गोही।
मंदिर में चढ़ाने को ,
बाट प्रभु की है जोही ।।
सुमनों से जो रच-रच तुमने,
केशों को सजाया था।
उन सुमनों की महक को,
भंवरा मिलने को आया था।।
मेरे बागवां के हो तुम पुष्प,
खिलता हुआ बहार बनों तुम।
अपनी खुश्बू जग में फैलाओ,
एक नई मिसाल बनो तुम।।
चांद को देखकर, शर्माती चांदनी है।
चांदनी रात में, नहाती यामिनी है,
अंधेरी रात में हमने,सुनी रागिनी है।।
तेरे चेहरे को देख, चांद भी फीका
लगता है।
रात के अंधेरे में,उजाले का दीप
जलता है।।
सागर में तेरी चांदनी,जगमग-जगमग
होती है।
ऐसा! लगता है कि जैसे, धरा में
चांद आया है।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,
स्वरचित और मौलिक