साइकिल
घर के पिछवाड़े स्टोर रूम में
रखी हुई है एक पुरानी साइकिल
धूल से पटी हुई,
उपेक्षित और तिरस्कृत सी
बता रही है समय के हिसाब से ही रहती है
चीज़ों का महत्व।
कभी यह साइकिल आने जाने का साधन रही,
और आज गाड़ियों के हुजूम ने इसे
महत्वहीन बना दिया है।
घर के पिछवाड़े स्टोर रूम में पड़ी पड़ी
जंग लगकर धीरे धीरे खत्म हो रही हैं।
याद दिलाती है उस बचपन की
जब खेतों की पगडंडियों के बीच से
पापा के साथ जाती थी हाट पर।
पीछे उस लोहे की सीट पर बैठकर भी
महसूस करती थी जैसे कोई राजसी सवारी हो।
साइकिल मित्र बनकर सदैव रही,
गरीबी और अमीरी का फर्क भूलाकर,
अमीर इसे अपनाते सेहत बनाने के लिए,
गरीब इसे प्रयोग में लाते खर्च बचाने के लिए।
अभी भी कहीं कहीं दिख जाती ये साइकिल
पुराने दिनों की याद ताजा कर जाने के लिए।