सांझ
क्यों आई लेकर साँझ उदासी ,,
मन प्यासा है तन प्यासा है ,,..
आखो में इतना पानी है
फिर भी मेरा घर सूना है ;;
केवल एकाकीपन का घेरा
पिय बिन कैसे बने बसेरा ..
सजनी बिन कैसी हो रजनी
क्या पीड़ा को गले लगाऊं
दुःख की छाया ,, विरही की कैसी माया
जब लोटे सजनी द्वारे , मन की कलियाँ तब सब जागे
आखें भी अब है प्यासी ,,क्यों आई लेकर सांझ उदासी ,,