“सहेज सको तो”
“सहेज सको तो”
जीवितों का तिरस्कार कर
पूज रहे मकबरे,
रीत है ये इस जगत की
कौन क्या करे?
सहेज सको तो सहेज लो
भावनाएँ सही,
वरना झण्डे ही रह जाएंगे
आदमी नहीं।
“सहेज सको तो”
जीवितों का तिरस्कार कर
पूज रहे मकबरे,
रीत है ये इस जगत की
कौन क्या करे?
सहेज सको तो सहेज लो
भावनाएँ सही,
वरना झण्डे ही रह जाएंगे
आदमी नहीं।