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27 Mar 2020 · 7 min read

“सही सूझबूझ से हुआ धोखे का खुलासा”

“आजकल तो सोशल-मीडि़या के मार्फ़त धोखा और जालसाजी एक आम बात हो गई है और आए दिन इस का हर कोई शिकार होता पाया भी जा रहा है, लेकिन मैं ऐसे ही आँखों देखी धोखे के खुलासे के संबंध में इस कहानी के माध्यम से अवगत करा रही हूँ।”

“इसी संदर्भ में आपके समक्ष यह कहानी प्रस्‍तुत कर रही हूँ, जिसमें किस तरह से नायक सोशल मीडि़या के जरिये धोखे का खुलासा करने में सफल होता है।”

मोहन कॉलेज की पढ़ाई के लिये गाँव से आता है और उसकी माँ गाँव में ही रहती है खेतों की देखभाल करने के लिये। आज कॉलेज का पहला दिन है, इसलिये वह समय पर हाज़िर होता है। “कॉलेज की सीढि़यों पर आराम करने थोड़ी देर बैठा ही था, तभी विक्रम आता है कॉलेज के अन्‍य दोस्‍तों के साथ।” जैसे कि हर कॉलेज में पहले दिन होता है| सब दोस्‍त मोहन को नया देखकर गोल घेरा बनाकर घेर लेते हैं और रैगिंग करने के उद्देश्‍य से बाल्‍टी में पानी भरकर मोहन पर उड़ेल देते हैं । बेचारा गाँव से आया हैरान और परेशान, “सब दोस्‍त एक साथ एक ही स्‍वर में हम कॉलेज में आने वाले हर नए दोस्‍त का स्‍वागत इसी तरह से करते हैं।”

अब बेचारा मोहन क्‍या जाने, गुस्‍सा तो बहुत आया उसे, पर कुछ कह नहीं पाया। गाँव से आते समय मोहन ने स्‍कूल के मास्‍टरजी से मोबाइल का उपयोग करना सीख लिया और माँ को भी सिखाया ताकि वह शहर जाकर अपनी माँ से बात तो कर सके । “गाँव के माहौल में पला-बड़ा मोहन, उसको शहर के रहन-सहन के बारे में ज्‍यादा जानकारी नहीं|” लेकिन वह सोचता है कि अब कॉलेज में मन लगाकर पढ़ाई करेगा| मोबाइल का सहयोग साथ लिए नेट के जरिये विकास की दिशा में प्रत्‍येक जानकारी एकत्रित कर सफलता के ऐसे मुकाम पर पहुँचने के लिये हरसंभव प्रयासरत रहेगा, “जिससे कि कॉलेज की पढ़ाई समाप्‍त होते ही नौकरी के आयामों को हासिल किया जा सके।”

लेकिन उसे कॉलेज के दोस्‍तों का व्‍यवहार पसंद नहीं आने के कारण| इस बारे में माँ से बात की, तो माँ ने कहा ऐसे गुस्‍सा मत हो, ऐसा तो चलता-रहता है बेटा। कुछ दिन बाद देखना कॉलेज में सभी तुम्‍हारे जिगरी दोस्‍त बन जाएँगे। “मेरी मजबुरी है बेटा गाँव में रहने की, खेतों की रखवाली, सिलाई-बुनाई करना भी जरूरी है न? जिससे तेरी पढ़ाई पूर्ण हो सके।”

कुछ ही दिनों में माँ के कहे अनुसार हुआ भी, कॉलेज में अब मोहन के कई दोस्‍त बन गए| पर मोहन जितना विक्रम से दूर रहने की कोशिश करता, विक्रम उसे उतना ही परेशान करता। विक्रम और उसके दो-तीन दोस्‍त शरारती थे ही, आए दिन उनका कॉलेज में शरारतें करना आम बात हो गई थी। “मोहन ने दूसरे दोस्‍तों से पूछा भी, यह क्‍या इस तरह से शरारतें करते रहते हैं और कोई इनकी शिकायत क्‍यों नहीं करते हैं?” पता चला कि विक्रम के पिता पुलिस में बड़े अधिकारी हैं, इसलिये सभी उनसे डरते हैं और कोई भी शिकायत करने की हिम्‍मत ही नहीं करता।

“मोहन विचारणीय अवस्‍था में कैसा शहर है ये? क्‍यों आया मैं गाँव से यहाँ पढ़ने? एक तो सब तरफ घर ही घर बनने से दम घुटता और ऊपर से कॉलेज का ऐसा माहौल। मैं यहाँ अपना अध्‍ययन कैसे करूँगा? इससे तो हमारा लहलहाता गाँव ही अच्‍छा था, दो वक्‍त की रोटी और बेहद सुकून। माँ कहाँ सुनती है भला, भेज दिया आगे की पढ़ाई के लिए।”

कॉलेज के अध्‍ययन को निरंतर बरकरार रखने की कोशिश में मोहन लगा रहता| एक दिन शाम को मोहन दोस्‍त के घर से आ रहा था, कि अचानक बारिश शुरू हो गई, वह बारिश से बचने के लिए टीनशेड़ के नीचे खड़ा ही था कि कुछ लोगों को गाडि़यों की डिग्गियों में बहुत सारे बम और हथियार रखते हुए और आपस में यह कहते हुए सुनता है कि आज तो पुरानी बस्‍ती में उड़ा देंगे सबको। यह सब देख और सुनकर मोहन एकदम सहमी हुई अवस्‍था में लेकिन हिम्‍मत रखते हुए और दिमाग़ से काम लेकर जैसे-तैसे उन गाडि़यों के नंबर तो नोट कर लेता है, साथ ही छिपते-छिपाते फोटो भी खींच लेता है।

फिर वह बारिश में भींगते-भींगते दौड़ लगाते हुए विक्रम के घर शीघ्र पहुँचने की कोशिश करता है, क्‍योंकि इस खतरनाक हादसे को रोका जाना अति-आवश्‍यक था और एक तरफ बारिश होने के कारण किसी वाहन की उपलब्‍धता भी नहीं। “नेटवर्किंग भी उपलब्‍ध नहीं होने के कारण फ़ोन की कनेक्टिविटी भी नहीं हो पाती।”

आखिर में वह ढूँढते हुए बारिश में भीगता हुआ पहुँच ही जाता है विक्रम के घर, और ज़ोरों से दरवाज़ा खटखटाता है। विक्रम दरवाज़ा खोलते ही डर जाता है, मोहन को देखते ही सोचता है, ये कहीं पिताजी से मेरी शिकायत करने तो नहीं आया?” विक्रम कुछ बोले, इससे पहले ही मोहन ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ देता है, अंकलजी ज़रा जल्‍दी बाहर आईये, आपको बहुत जरूरी जानकारी से वाकिफ कराना है।” इधर विक्रम सोचता है कहीं मेरी और मेरे शरारती दोस्‍तों की शिकायत तो करने नहीं आया।

अंकलजी मैने आते समय तीन-चार लोगों को पुरानी बस्‍ती में सबको उड़ा देने की खबर सुनी और गाडि़यों की डिग्गियों में बम व हथियार रखते हुए देखा, इससे पूर्व कि कुछ हादसा हो, इसकी सूचना आपको देना जरूरी समझा, इसलिये मैं इतनी बारिश में आपका घर ढूँढतें हुए चला आया।

विक्रम के पिताजी कहते हैं, यह तुमने सही किया बेटा। कौन हो तुम? मैं जानता नहीं तुम्‍हें और न ही विक्रम ने ही कुछ बताया तो तुम्‍हारी बातों पर कैसे विश्‍वास करूं? यह सब सुनकर विक्रम एकदम से अचंभित होकर अपने पिता से पूर्ण विश्‍वास के साथ कहता है कि मोहन उसके साथ ही कॉलेज में पढ़ रहा है और बहुत ही नेक एवं होनहार दोस्‍त है। “मैं और मेरे साथी फिर भी अपने अध्‍ययन की तरह बिना ध्‍यान दिए ही आए दिन शरारतें करते रहे कॉलेज में, लेकिन मोहन जब से गाँव से आया है, वह नियमित रूप से अपने अध्‍ययन में ही व्‍यस्‍त है और अपनी माँ के बताए रास्‍तों पर ही चलने की कोशिश भी कर रहा है पिताजी।”

जी हाँ अंकल जी, मैं गाँव से यहाँ पढ़ने आया हूँ ज्‍यादा कुछ तो जानता नहीं पर जो भी गाँव में पढ़ा-सीखा है, गुरूजनों और माँ द्वारा सही-गलत की शिक्षा मिली है और अभी-अभी मोबाइल पर भी अपने विकास के लिए ज्ञान प्राप्‍त करने की कोशिश कर रहा हूँ।

अंकलजी मैने छिपते-छिपाते उन अवैध गाडि़यों के नंबर और फोटो तो जैसे-तैसे अपने मोबाइल से खींच लिये हैं। इतने में विक्रम कहता है, अरे वाह दोस्‍त यह तो बहुत ही उचित कार्य किया और वह भी दिमाग़ का सही इस्‍तेमाल करके इतना तो भी सूझा तुझे। आजकल तो नवीन टेक्नोलॉजी से गाड़ी पर लिखे हुए रजिस्‍ट्रेशन नंबर के जरिए आप गाड़ी और उसके मालिक के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं।” पहले ये जानकारी पता करना आम इंसान के बस की बात नहीं थी, लेकिन आज के समय में इस जानकारी को टेक्‍नोलॉजी की सहायता से बहुत आसानी से हासिल कर सकते हैं।”

“पुलिस अधिकारी जी द्वारा त्‍वरित कार्यवाही प्रारंभ कर मामले की पूर्ण रूप से तहकीकात की गई। शरारत करने वाला विक्रम अब मोहन का जिगरी दोस्‍त बन गया और साथ ही अब तो दोनों ने अन्‍य दोस्‍तों के साथ मिलकर इस धोखे के खुलासे में पुलिस विभाग की सहायता की।”

इसी बीच मोहन ने इस वाकये के बारे में अपनी माँ को भी वाकिफ कराया, फिर माँ बोली थोड़ा होशियार रहना बेटा। शहर में तू नया है, किसी पर भी एकदम से विश्‍वास मत करना। “नहीं माँ अब तो तू बेफिक्र रहे, विक्रम के साथ ही अन्‍य साथी भी मेरे पक्‍के दोस्‍त बन गए हैं जो मेरी मदद के लिए सदा तत्‍पर हैं।” इस घटना के बाद सभी दोस्‍त बन गए हैं मेरे| माँ…….

इधर पुलिस विभाग की प्रक्रिया ज़ोरों पर थी, मोहन द्वारा नोट किये गए गाडि़यों के नंबर्स एवं खींचे गए फ़ोटो से उन अपराधियों तक पहुँच सकें। पुलिस विभाग के सभी संबंधित कर्मचारी पुलिस की वर्दी न पहनकर दूसरी पोषाक में अपना रूप परिवर्तित कर और मोहन व विक्रम संग सभी साथियों ने उन अपराधियों को जा घेरा, वह भी ऐसे समय कि वे विस्‍फोट करने जाने ही वाले थे कि इन सबने उनको धर पकड़ा और पुरानी बस्‍ती में इस तरह धोखे का खुलासा हुआ और कोई भयानक विस्‍फोट नहीं होने पाया व बेचारे बस्‍ती में रहने वाले लोगों की जान बच गई।

पुलिस विभाग की तहकीकात के बाद यह भी बात सामने आई कि वह बहुत बड़ी गैंग थी, जो पूर्व में भी अन्‍य जगहों पर इसी प्रकार विस्‍फोट कर चुकी थी और ख़ुफ़िया एजेंसी से मिली हुई थी, गैंग का नाम रखा था सुरक्षा संस्‍थान और काम ऐसे पकड़ाई में आए। और तो और यह भी मालूम हुआ कि विक्रम के पिताजी को भी खत्‍म करने की योजना थी, क्‍योंकि उनकी गाड़ी में भी बम पाए गए, जाचोपरांत| विक्रम तो बिल्‍कुल हक्‍का-बक्‍का रह गया, यह सब खुलासे के पश्‍चात और उसके साथ सभी साथियों ने यह प्रण किया कि अब से वे शरारते बिल्‍कुल नहीं करेंगे, मन लगाकर अध्‍ययन करेंगे और “अपने जिगरी दोस्‍त मोहन, जिसकी वजह से सबसे मुख्‍य एक पुलिस अधिकारी ऊर्फ पिताजी की जान बची, उसका सदैव सहयोग करेंगे और साथ ही यह दोस्‍ती हम नहीं छोडेंगे, इस पर सदा अमल करेंगे।”

आजकल ऐसी ही संस्थाएँ‎ इस तरह से नाम रखकर लोगों को गुमराह करते हैं, इसलिये हम सबको सतर्क रहने की बहुत आवश्‍यकता है।

अंत में पुलिस विभाग के समस्‍त अधिकारियों, कर्मचारियों, कॉलेज के समस्‍त शिक्षकों और सभी साथियों द्वारा मोहन की सूझ-बूझ की प्रशंसा करते हुए धन्‍यवाद दिया गया, साथ ही विक्रम के पिताजी द्वारा यह ऐलान किया गया कि मोहन व उसके साथी दोस्‍तों को इस नेक कार्य हेतु सरकार द्वारा ईनाम भी घोषित किया गया है।

मोहन और उसके साथी खुशी-खुशी गाँव जाते हैं मोहन की माँ से मिलने|

आरती अयाचित

भोपाल

Language: Hindi
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