सहारे
सूरज कहाँ, चाँद कहाँ, तारे कहाँ,
रोशन करें महफिल वो नजारे कहाँ?
हर आदमी आज जीता है अपने लिए,
वतन की खातिर जिऐं-मरें वो दुलारे कहाँ?
एक इस पार तो दूजा उस पार नदी के,
मिल सकें आपस में वो किनारे कहाँ?
हम तो समझते थे कुछ हमें भी हक है,
जताया तो आपने कि आप हमारे कहाँ?
जख्म सभी को अपने दिखाया न करो,
बाँट लें दर्द ‘कंचन’ अब वो सहारे कहाँ?
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
वर्ष :- २०१३.