सहारा यहाँ
हर कोई ढूँढता है जीवन में सहारा यहाँ,
ज्यादा देर ना हो पाए अकेले का गुज़ारा यहाँ।
यह सब किस्मत और तदबीरों के खेल ने सारे,
कभी तो मिल जाए जीत और कभी हारा यहाँ।
बदले मौसम या करैंसी, क्या फ़र्क अमीरों को,
परंतु गरीबों को पड़े हर तरफ़ ही मारा यहाँ।
मिलते है माया से बचने के यहाँ नित्य सुनेहें,
फिर क्यों गोलक पीछे चलती है तलवारें यहाँ।
बदलती देखी ना मैं गरीबों की किस्मत यारों,
चाहें लाखों दावे करती ‘गिल्ल’ सरकारें यहाँ।
कौन पूछे जब गिरता है ग़रीब का छप्पड़ कोई।
महल गिर जाएं तो रोती है सभी अख़बारे यहाँ।
सांझे ना रहे परिवार और बदले रंग खुन के,
होती सलाहें कम, अधिक होती तकरारें यहाँ।
मनदीप गिल्ल धड़ाक