“सहर होने को” कई और “पहर” बाक़ी हैं ….
पूछ के उम्र मेरी कम ना कर
मेरी ज़िन्दगी के पल साक़ी ,
सालों बाद तो मिला हूँ फिर अपने आप से …
अभी – अभी तो सुरूर आया है ….
“जाम” तो अभी भी “आधी” है मेरे प्याले में
मुस्कुरा रहा हूँ और जी रहा हूँ
हर पल अपने गुज़रे जमाने को
और लगा सकता हूँ ये शर्त के हर शख़्श
जो फुर्सत में बैठा है – बंद कर अपनी आँखें
अपने गुजारे के गुजरे में जी रहा होगा
मत पूछ मेरी उम्र,
रहने दे कायम इस सुरूर को
एक रात फिर और जी लेने दे
मेरी ज़िन्दगी के उन हसीं लम्हों को
और (शायद) अभी तो “सहर होने को”
कई और “पहर” बाक़ी हैं ….
अतुल “कृष्ण”