ससुराल ससुराल में फर्क ,क्यों ?
दामाद को चाहिए ससुराल में ,
बहुत सारी सेवा और मान सम्मान ।
ना मिले गर तो सुनाएगा पत्नी को ताने ,
और कर लेगा ससुराल वालों से अनबन ।
मगर बहु को चाहते हुए भी न मिले ,
ससुराल में प्रेम ,देखभाल और सम्मान ।
ना मिले तो भी बेचारी समझौता करेगी ,
सारा जीवन उसका बन जाता जंग का मैदान ।
ससुरालियों की बहुत सारी आशाएं ,
कुछ परोक्ष ,कुछ प्रत्यक्ष कामनाएं।
थोप दी जाती है बहु के सर पर ।
सारा परिवार सुख उठाए उसकी सेवा का ,
और यह ऐश करे उसके दम पर ।
दामाद के ससुराल वालों की भी तो ,
होती है कुछ आशाएं और कामनाएं ।
दामाद के विश्वास पर भेज देते है वो ,
बेटी के सुखी जीवन की कर के दुयाएं ।
आशा और विश्वास का भाव ,
रहता सबके हृदय में समान ।
तो क्यों दोनो ससुरालों में इतना फर्क ?
क्यों बहु को नहीं मिलता सारा सुख ,
ससुराल वालों से दामाद के समान ?
बहु एक ही दिन कर लेती सारे समझौते ,
और ससुराल को समझ लेती अपने घर के समान।
और दामाद सारा जीवन ही बना रहता V I P ,
फिर भी नहीं समझता ससुराल को अपने ,
घर के समान ।
काश ! ससुराल ससुराल में फर्क ना होता,
बहु भी पाती दामाद जितना सेवा सत्कार और सम्मान।
उसके लिए भी होता ससुराल और मायका एक समान।