सवाल कैसा?
दिल में आया कुछ ख़्याल ऐसा,
ना तू मेरी ना मैं तेरा,
फिर इंतज़ार का सवाल कैसा?
जब इकरार कि कहीं,
कोई गुंजाइश नहीं,
फिर इज़हार का सवाल कैसा?
जिसे वादों के बंधन में बांधा नहीं,
ख़ामोशी का जवाब भी मांगा नहीं,
तुम ही कहो ऐ “अंबर” कि वहां,
किसी एतबार का सवाल कैसा?
कवि-अंबर श्रीवास्तव