सलीका मुहोबत का
वोह कहते है की हमें सलीका नहीं मुहोबत का ,
तुममें है कितना शहूर ,ज़रा इतना बता दो ।
ना एहतराम करे गुलिस्तान बहार का ,
तो वोह भी लौट जाया करती है ।
हम भी चले गए जो खफा होकर तुम्हारी महफ़िल से,
नहीं लौटेंगे हम भी चाहे हमें जितनी आवाज़ दो.।