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11 Dec 2016 · 1 min read

सलाम आया है अभी पैग़ाम बाकी है

सलाम आया है अभी पैग़ाम बाकी है
उठा नहीं अभी तक वो गाम बाक़ी है

तबीयत हो कि मौसम बिगड़ ही जाता है
इनकी भी कोइ बननी लगाम बाक़ी है

भरी महफ़िल में कही ना कहने कि बात
या खुदा अब कौन सा इनाम बाक़ी है

सर फोड़ के उसी पत्थर से बार- बार
उन लौटती लहरों का अंजाम बाक़ी है

जो छू गये दिल ज़हन को हल्का कर गये
उन सुखनवरों का अब भी नाम बाक़ी है

कौन सी नज़र से मैं बहारों को देखूं
गुज़रना अभी यहाँ से तूफ़ान बाकी है

लगे है बरसों समेटने में फिर भी ‘सरु’
बिखरा हुआ अभी यहाँ सामान बाक़ी है

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