सर्राफा- हड़ताल वर्ष 2016
संस्मरण
सर्राफा- हड़ताल वर्ष 2016
सर्वप्रथम एक कुंडलिया प्रस्तुत है :-
धरने पर थे बैठते , सर्राफे के लोग
मिले एकजुटता बढ़ी ,मधुर सुखद संयोग
मधुर सुखद संयोग , दरी पर बैठा करते
आधी सड़क सँभाल ,गगन नारों से भरते
कहते रवि कविराय , प्रेम के बहते झरने
आए थे सब पास , याद आते हैं धरने
वास्तव में 2016 में सोने के कारोबार पर एक्साइज ड्यूटी लगाए जाने के कारण प्रतिबंध जैसी स्थिति आते देखकर अखिल भारतीय स्तर पर सर्राफा व्यवसायियों की ऐतिहासिक हड़ताल हुई थी । दो मार्च 2016 से दस अप्रैल 2016 तक चालीस दिन तक बाजार बंद रहे । दुकानों पर ताले लटके रहे । कोई कारोबार नहीं हुआ । एक पैसे की न बिक्री ,न खरीद ,न आमदनी ।
रामपुर में भी रोजाना दरी बिछाकर आधी सड़क पर सब लोग बैठते थे । सर्राफा व्यवसाई चिंता में डूबे हुए थे । समस्या बड़ी और गहरी थी । चालीस दिन की हड़ताल ने रोजी-रोटी का संकट पैदा कर दिया था। लेकिन वास्तव में सरकार के कानून से जो भय व्याप्त हुआ था ,मूलतः रोजी – रोटी का संकट तो उसके द्वारा पैदा हुआ था। उसी से उबरने के लिए सब व्यापारी संघर्षरत थे। माइक-लाउडस्पीकर का इंतजाम रहता था और दिन – भर नारे लगते थे। समय-समय पर हम सब लोग अपने विचार व्यक्त करते रहते थे ।
व्यापारी संगठनों का भी बड़ा सहयोग रहा । शैलेंद्र शर्मा जी तो इस आंदोलन के एक अभिन्न अंग ही बन गए थे । प्रायः रोजाना हमारे धरने में रहते थे । बैठते थे, सलाह देते थे और अपने विचार प्रकट कर के आंदोलन को उत्साहित करते थे । संदीप सोनी जी, अनिल अग्रवाल जी ,कपिल आर्य जी आदि तमाम नाम ऐसे हैं जो समय-समय पर आंदोलन के समर्थन में जुटते रहे ।
धरने के साथ-साथ अनशन भी चले। व्यापारी-गण सुबह अनशन पर बैठते थे और शाम को अनशन तोड़ते थे। इस तरह भी वातावरण बनाया गया । बाइक रैली भी निकली । मशाल जुलूस भी निकाला गया। उत्साही बंधु चंद्र प्रकाश रस्तोगी जी मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी संभाले हुए थे । सब गतिविधियों को अपने रजिस्टर में नोट करते जाते थे । कुछ बंधु उत्साह में आकर ट्रेन रोकने की भी योजना बनाने लगे थे । लेकिन समझदार लोगों ने उनको कानून हाथ में लेकर कोई भी काम न करने की सलाह दी। सौभाग्य से वह मान गए ।
अपनी बात जितने मंच भी थे, उन सब पर हम लोगों ने कही । रामपुर – बरेली हाईवे पर जब केंद्रीय मंत्री श्री मुख्तार अब्बास नकवी के सामने एक छोटी – सी मीटिंग हुई जिसमें एक सौ के करीब व्यापारी इकट्ठा हुए थे । तब भी हमने अपनी पीड़ा को अभिव्यक्त किया था ।
स्थिति की भयावहता को दर्शाने के लिए एक बार हमारे बंधु सब्जी का ठेला ले आए थे और उस पर सब्जी ही बेचने का नाटक करने लगे थे। कुछ लोगों ने इसी भाव से बेरोजगार दफ्तर की ओर भी प्रस्थान किया था । हमने भी इन्हीं परिस्थितियों पर कुछ हास्य कविताएँ लिखकर उन दिनों सभा में सुनाई थीं।
इस पूरे दौर में नुकसान तो बहुत रहा लेकिन एक फायदा हुआ । सब व्यापारी दुख की इस घड़ी में एक दूसरे के ज्यादा करीब आए । उनमें आत्मीयता बढ़ी। सबका संग – साथ रोजाना होता था । सुबह से शाम तक दरी पर पास-पास बैठने के कारण चेहरे पहचानने में मदद होने लगी । एक दूसरे के स्वभाव से परिचित होने लगे । आंदोलन की वैचारिकता के साथ-साथ और भी बातें करते रहते थे। एक तरह से दुख की इस घड़ी में भी एक प्रकार की मस्ती थी । वह जो संग-साथ और संपर्क उन चालीस दिनों में गहरा बना ,वह अभी भी स्मृतियों में जीवित है । जब भी उस दौर का स्मरण करते हैं ,तो आँखों में चमक आ जाती है ।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451