सर्द हवाएं
शीत ऋतु अपने चरम पर है
कुहासे का प्रकोप और बढ़ रही गलनऔ
शूल सी चुभती हवाएं,
हिला रही हैं हर किसी को।
बूढ़े बच्चे जवान ही नहीं
पशु पक्षी,कीट पतंगों तक को,
न जाति धर्म का भेद
सबसे सम व्यवहार।
पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी
सर्द हवाओं का सितम जारी।
ठंड के चलते घरों में हैं दुबके लोग
सुरक्षित छांव की तलाश में
जाने कितने गरीब असहाय बेबस लाचार लोग,
परिवार का पेट भरने की जद्दोजहद में लगे मजदूर
अलाव के छिटपुट होते दर्शन
कूड़े करकट जलाकर
ठंड से बचने की कोशिश में जहां तहां लोग।
न दिन का सूकून, न रात को चैन
पूस की बेदर्द ठंड भरी रात ही नहीं
दिन भी झकझोरता है,
जीवन से संघर्ष करते निर्धन गरीब लाचार लोग
ईश्वर के भरोसे खुद को छोड़ कर भी
अपने भाग्य को कोसते हैं
और दिन रात बस यही दुआ करते हैं
बस कैसे भी कट जाए ये ठंड का मौसम
और सर्द हवाओं के थपेड़ो से मिल जाए मुक्ति।
बस ऐसे ही कट जाता है माघ पूस की ठंड
और तब मिल पाती है समय के साथ
सर्द हवाओं से आजादी,
और मन को तब हो जाता है संतोष
होता है अपना अपना भाग्य।
क्योंकि यही तो है जीवन दर्शन
और सर्द हवाओं का कटु अनुभव,
जो हर वर्ष आता और जाता है कुछ इसी तरह
कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें सौंप ही जाता है
हम सबके लिए दे जाता है कुछ संदेश भी।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश