सर्दी
गीतिका आधार छंद : बरवै मात्रिक
विधान : १९ मात्राएँ, १२ एवं ७
नित्य दिवस सर्दी का, ऐसा वार।
चलती रहती तन पर, ज्यों तलवार।
मोजे, स्वेटर, पहने, सारे लोग,
तन पर लादे घूमे, कितने भार।
सबको भाने लगती ,है तब धूप,
पड़ने लगती ठंड़ी, की जब मार।
धना कोहरा छाया, चारों ओर,
सूर्य सो गया गायब, चाँद सितार।
छोटे दिन हैं लंबी, लगती रात,
सनसन करती चलती, तीक्ष्ण तुषार।
बड़े बुजुर्गों का बढ़,जाता दर्द,
लेकिन भाते बच्चों, को हर बार।
मूंगफली हम खाते, रहते फोड़,
मिले गच़क गुड़ तिलकुट, का भंडार।
मीठा मालपुआ में,भरकर स्वाद,
अंगीठी की गर्मी,माँ का प्यार ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली