सर्दी का मौसम
दिखता नहीं दूर तक अब
कोहरे ने ढका है सब अब।
गांव से निकलना है मुश्किल,
जाए तो जाए कहां हम अब।।
छिपे हुए हैं रजाई हम सब,
सर्दी ने सबको कैद में डाला
पिला दे कोई हमे प्यार से
एक गर्म चाय का प्याला।।
वाहन सभी रास्ते में रुके है
चलने उन्हे कोहरा नही देता।
मंजिल पर कैसे वे सब पहुंचे
समझने हमे नही कुछ देता।।
सूरज भी नही निकल रहा,
कर रहा वह आंख मिचौली
कोहरा कहर ढा रहा है अब
सुना रहा है अपनी पहेली।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम