Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Oct 2020 · 1 min read

सरिता

सरिता की कल कल करती ये धारा
चट्टानों से टकराती है ,आंधी तूफानों में भिड़ जाती है।
पर्वत से निकल मैदानों में बह सागर में मिल जाती है।
सरिता की कल कल करती ये धारा
कोमल सी है ये जैसे पंखुड़ी है गुलाब की
निर्मल सी है जैसे बारिश है फुहार की
सरिता की कल कल करती है ये धारा
धरा पर जब गिरती है ,देश की माटी पावन हो जाती है।
खेतों में जब जाती है ,बंजर जमी को हरियाली में खिलखिलाती है।
सरिता की कल कल करती ये धारा
ठंडी हो या गार्मी कभी न थकती ,कभी न रुकती
खुद को कष्ट देकर दूसरों के कष्ट सहती है।
सरिता की कल कल करती है धारा
प्यासों की प्यास बुझाती एकता का परिचम है लहराती
सरिता की कल कल करती ये धारा
काव्य की है यह पावन सरिता।
ईश्वर की है यह अद्भुत रचना कैसे भी हो हालात धरा पर ये निर्मल सी बहती है।
सरिता की कल कल करती ये धारा

मेरी इस कविता में यदि आपको लगता है कि कोई गलती हुई है या इसमें कोई और सुधार हो सकता है तो कृपया मुझे बताइए।
शुक्रिया ??

Language: Hindi
7 Likes · 1 Comment · 500 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Kbhi Karib aake to dekho
Kbhi Karib aake to dekho
Sakshi Tripathi
मन-गगन!
मन-गगन!
Priya princess panwar
स्वतंत्रता की नारी
स्वतंत्रता की नारी
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
उसकी सूरत देखकर दिन निकले तो कोई बात हो
उसकी सूरत देखकर दिन निकले तो कोई बात हो
Dr. Shailendra Kumar Gupta
कविता// घास के फूल
कविता// घास के फूल
Shiva Awasthi
......मंजिल का रास्ता....
......मंजिल का रास्ता....
Naushaba Suriya
मोबाइल महिमा
मोबाइल महिमा
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
నమో గణేశ
నమో గణేశ
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
जहां पर जन्म पाया है वो मां के गोद जैसा है।
जहां पर जन्म पाया है वो मां के गोद जैसा है।
सत्य कुमार प्रेमी
तुम क्या चाहते हो
तुम क्या चाहते हो
gurudeenverma198
*आस्था*
*आस्था*
Dushyant Kumar
जिस भी समाज में भीष्म को निशस्त्र करने के लिए शकुनियों का प्
जिस भी समाज में भीष्म को निशस्त्र करने के लिए शकुनियों का प्
Sanjay ' शून्य'
Stop chasing people who are fine with losing you.
Stop chasing people who are fine with losing you.
पूर्वार्थ
2747. *पूर्णिका*
2747. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
पुकार
पुकार
Manu Vashistha
खुली किताब सी लगती हो
खुली किताब सी लगती हो
Jitendra Chhonkar
नज़रों में तेरी झाँकूँ तो, नज़ारे बाहें फैला कर बुलाते हैं।
नज़रों में तेरी झाँकूँ तो, नज़ारे बाहें फैला कर बुलाते हैं।
Manisha Manjari
इज़हार ज़रूरी है
इज़हार ज़रूरी है
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
सौगंध से अंजाम तक - दीपक नीलपदम्
सौगंध से अंजाम तक - दीपक नीलपदम्
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
"कभी मेरा ज़िक्र छीड़े"
Lohit Tamta
हार से डरता क्यों हैं।
हार से डरता क्यों हैं।
Yogi Yogendra Sharma : Motivational Speaker
इसी से सद्आत्मिक -आनंदमय आकर्ष हूँ
इसी से सद्आत्मिक -आनंदमय आकर्ष हूँ
Pt. Brajesh Kumar Nayak
देवा श्री गणेशा
देवा श्री गणेशा
Mukesh Kumar Sonkar
ईश ......
ईश ......
sushil sarna
"ऐ जिन्दगी"
Dr. Kishan tandon kranti
वफ़ाओं का सिला कोई नहीं
वफ़ाओं का सिला कोई नहीं
अरशद रसूल बदायूंनी
मस्ती हो मौसम में तो,पिचकारी अच्छी लगती है (हिंदी गजल/गीतिका
मस्ती हो मौसम में तो,पिचकारी अच्छी लगती है (हिंदी गजल/गीतिका
Ravi Prakash
चीर हरण ही सोचते,
चीर हरण ही सोचते,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
माँ शारदे-लीला
माँ शारदे-लीला
Kanchan Khanna
■ लघुकथा / सौदेबाज़ी
■ लघुकथा / सौदेबाज़ी
*Author प्रणय प्रभात*
Loading...