सरिता
सरिता
निदाघ-दाघ से शनैः-शनैः पिघल
फिर हिमशैलों से निकल-निकल
निज पथ गतिशील तरल अविरल
बाधा-बंध को कर निर्बन्ध,विकल
अधीर नीर निर्भय निरंतर प्रवाह
उद्विग्न उर,किस मिलन की चाह
निश्छल,निमग्न सदा दो पाटों में
कलकल रव,स्वर-भंग सन्नाटों में
चंचल है,इठलाती है,बलखाती है
पर ज्वारों को भी अंग लगाती है
सरिता का जीवन-धन ही लहर है
और लयमय गति-विलय सागर है
-©नवल किशोर सिंह