सरहद
सरहदों के दायरों ने लिख दी ये तारीख कैसी,
हर निगाह मे तो है फिर भी दिखती नहीं बारीक इतनी;
दोस्तों ने दोस्तों की दोस्ती को खो दिया,
दुश्मनी करके भी हमने ऐसा क्या हासिल किया;
सरहदों से हमने बांटे खेतों को कुछ इस तरह,
दिख नहीं रही है फिर भी खिल रही कलियाँ वही;
दुश्मनी ने खाक कर दी दोस्तों की दोस्ती,
आज फिर से जल उठी सरहदों की गलियाँ कहीं;
दोस्तों के खून में डूबी एक कलम की स्याही है,
दोस्तों से दुश्मनी की ऐसी है दास्तां मेरी।।