सरकारी नौकरी
घर से निकला लिए हाथ में लोटा और लंगोटी।
ऐसी लगी नौकरिया भैया जम गई अपनी गोटी।।
रास ना आए बांस मसहरी और पानी की रोटी।
बिसुर गईं सब नीम निबोरी खद्दर वाली धोती।।
शहर सुहाना ऐसा जिसमें कटवा ली मैंने चोटी।
एसी बीच पड़ी हूँ घर में, लगे दुपहरिया छोटी।।
फ्रेंच स्टाइल में बने औसारे, पनीर भरी मेरी रोटी।
ऐसी लगी नौकरिया भैया जम गई अपनी गोटी।।
सौ जन्मों के धुले दरिद्र, चमड़ी हो गई मोटी।
ऐसा फेरा पड़ा पैर में ,लगती दुनिया छोटी।।
तीनों ‘म’ मेरे कब्जे में, बनी आंख का तारा। मनी,मर्सिडीज,मैडम, होटल पांच सितारा।।
दूर विदेश सामान मंगा कर, महल बनाया न्यारा।
गांधीजी और देश प्रेम का ,लगा-लगा कर नारा।।
लंदन में मेरे दो बंगले ,स्विस बैंक में खाता।
दूर-दूर सरकारी खर्च पर, रहता आता जाता।।
जोड़ा सब सामान, मनाता मौज बढ़ाता, खाता।
बना रहा फार्म हाउस, यदि खैर करें विधाता।
मीरा परिहार ✍️💐