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3 Jul 2021 · 6 min read

सम्राट

सम्राट

चार दिनों पहले ही मुंबई जैसे महानगर से अकबरपुर जैसे छोटे से गाँव मे शिफ्ट होना पड़ा। पूरे घर मे सामान अभी भी बिखरा पड़ा था,गलियां इतनी तंग थी लग रहा था अभी दम घुट जाएगा। घर मे न कोई खिड़की …..न कोई रोशनदान …पर क्या करूँ? परिस्थितियां सब कुछ सीखा ही देतीं हैं। मैं बेमन ही सामानों को समेटने की कोशिश करती रही, तभी बाहर से आती बच्चों के शोर ने मुझे अपनी तरफ खींच लिया। मैंने देखा 11-12 साल के पाँच छह बच्चे एक लगभग सात वर्षीय बच्चे के पीछे भाग रहे हैं। वह बच्चा मुझे
देखते ही मदद की उम्मीद से मेरी साड़ी की पल्लू से लिपट गया, और मेरे आगे पीछे डोलने लगा “जिज्जी,ये सब मुझे
चपरगंजू कह के चिढ़ाते हैं”। मैं कुछ पल उस बच्चे को निहारती रह गई साँवला सा चेहरा, बड़ी बड़ी आँखे घुंघराले बाल जिसे वो बार बार चेहरे से हटाने का असफल ही प्रयास करता रहा। हाँ ….बिल्कुल ऐसा ही बच्चा तो मेरी कल्पना में आकर मेरी ममता को व्याकुल कर जाता,ऐसा लग रहा था मानो
मेरी कल्पना जीवंत हो के मेरे सामने खड़ी हो।
“जिज्जी”…… वह मेरा पल्लू खींचने लगा।
“क्यों भई, क्यों परेशान करते हो छोटे से बच्चे को?”मेरी आवाज़ सख़्त हो गई थी।
“अरे दीदी,आप अभी अभी आई हो,समझ जाओगी धीरे धीरे
ये रात में चिल्ला चिल्ला के सबको परेशान करता है….
बात बात में ज़िद करता है, देख ही लोगी आप भी”। एक बच्चा एक ही साँस में बोल गया।
“अच्छा…तो रात में तुम चिल्लाते हो?”
वह मेरे चेहरे के आते जाते भावों को पढ़ता रहा फिर दो
क़दम पीछे हट गया।
वो बच्चा इतना मनमोहक था कि मैं उसपे नाराज़ हो ही नही पाई और मेरी हँसी छूट गई, मैंने उसे गोद मे उठा लिया।
फिलहाल मैं उसे उन सब बच्चों से बचाते हुए अपने रूम पे ले आई और बिस्किट देते हुए पूछा “नाम क्या है तेरा?”
“मेरे बहुत सारे नाम हैं जिज्जी, बहने छुटकू बुलाती है,दोस्त चपरगंजू ,पप्पा कालू और अम्मू सम्राट।”
“चल आज से मैं तुझे कृष्णा बोलूंगी।”
“ठीक है ना?”
“हूं” वह मुझे देखता रहा।
“पर तू कैसा सम्राट है रे…. सम्राट किसी को परेशान नही करते तू तो बात बात में ज़िद करता है, अपनी अम्मू को तू कितना परेशान करता है रात में गला फाड़ फाड़ के सबकी नींदे ख़राब करता है…..ऐसा कोई सम्राट होता है भला?”
वह बड़ी बड़ी आँखों से पहले तो मुझे घूरता रहा फिर मेरी गोद से भागते हुए धीरे से बोला “लाइट जाती है तो मुझे डर लगता है,मुझे अंधेरा अच्छा नही लगता, जी घबराता है।”
वह दौड़ के मेरी लोहे के गेट से झूलने लगा।
अब वह रोज मेरे घर आने लगा,उसकी प्यारी प्यारी बातों से मेरा भी वक़्त आराम से गुजरने लगा। एक दिन मैंने यूँ ही पूछ ही लिया “तू पढ़ाई नही करता है?”
“करता हूँ।” वह अतिसंक्षिप्त उत्तर देकर बात को ज़्यादा नही बढ़ाना चाहता था।
“कहाँ जाता है पढ़ने?”
“संत मेरी पब्लिक स्कूल”
नाम सुन के मैं चौंक गई क्योंकि वह स्कूल मँहगे स्कूलों में से एक था और इनके घर की हालत ऐसी नही थी।वह कुछ देर मेरे चेहरे को पढ़ता रहा फिर जाने क्या सोच के बोला “पर्ची निकली थी जिज्जी।”
अच्छा..ई.डब्ल्यू.एस…
“पढ़ाई में मन लगता है?”
वो चुप रहा, बिल्कुल चुप।
“क्या हुआ?” मैंने उसके गाल पे मीठी चपत लगाई।
“जिज्जी, स्कूल में मुझे सब चिढ़ाते हैं।”
“ओह्ह,….अब स्कूल में भी?”
“मेरे पप्पा ऑटो चलाते हैं न, इसलिए।”वह रुआँसा हो गया।
“तो क्या हुआ? ऑटो चलाना ग़लत है क्या? नही कृष्णा….
कोई काम छोटा नही होता। तेरे पप्पा तो सबको उसकी मंजिल तक पहुंचाते हैं और किसी को उसकी मंज़िल तक पहुँचाना तो बहुत बड़ी बात है ….है न? ऐसी छोटी मोटी बातों
पे उदास नही होते। लोग तो कहते ही है…और कहेंगे ही, हमे सबकी बातों को दिल से नही लगाना चाहिए।”
वो मेरी शब्दों की भाषा जाने कितना समझ पाया पर जाते जाते मेरे गले से लिपट के बोलता गया “जिज्जी,आप बहुत अच्छी हो।”
कल होली है,सब होली की तैयारी में व्यस्त थे मैं भी सामानों की लिस्ट बनाने में तल्लीन थी तभी कृष्णा एक गुब्बारे में पानी भर लाया और ‘होली है’ चिल्लाते हुए मेरी तरफ गुब्बारा फेंका।पानी से मेरी पूरी लिस्ट ख़राब हो चुकी थी,मुझे
गुस्सा आया और मैंने कृष्णा के गाल पे एक थप्पड़ जड़ दिया
“ओह्ह…..पानी से कोई खेलता है भला,सारी लिस्ट ख़राब कर दी तूने।”
मुझसे अथाह प्रेम पाने वाला शायद इस थप्पड़ की कल्पना कभी न की होगी। वह बड़ी बड़ी आंखों से आंसू टपकाता खड़ा रहा।”मुझे होली बहुत पसंद है जिज्जी।”
जाने क्यूँ उसके आँसू मेरे हृदय को भेद जाते,इस जन्म का तो कोई रिश्ता नही पर अगर ये जनम जनम का बंधन सच होता है तो इससे मेरा पूर्व जन्म का कोई बंधन ज़रूर रहा होगा।
मैं उसे किसी तरह मनाने की कोशिश करती रही और उंगली पकड़ के अपने पास बुला लाई “अच्छा बता तुझे होली में क्या चाहिए?”
“आपसे कट्टी…..कट्टी…..कट्टी ” वह अपनी उँगली दिखाकर यूँ प्रमाण दे रहा था मानो अब मुझसे कभी बात न करेगा।
“मेरे पप्पा बहुत सारी चीजें लाएंगे” कहते हुए वह दौड़ के अपने पप्पा से चिपट पड़ा, और तिरछी नज़रों से मुझे देखते हुए अपनी फरमाइशों की लंबी फ़ेहरिश्त अपने पप्पा को सुनाता रहा मानो मुझे कहना चाह रहा हो तुम्हे क्या लगता है जिज्जी तुम न खेलने दोगी तो मेरी होली न होगी…देखना कैसे मनाता हूँ होली।
दोपहर के समय मैं भी अपने पति के साथ बाज़ार निकल पड़ी।गाड़ियों की लंबी कतार को देखते हुए रिक्शेवाले ने हमे बीच मे ही उतार दिया,आगे जा के हमने देखा कोई एक्सीडेंट हो गया था।भीड़ केबीच से हमे ज़रा सा नज़र आया अरे ये तो कृष्णा के पप्पा हैं खून से लथपथ।लोगों से पता चला एक बाइक से हल्की टक्कर हो गई थी इसलिए बाइक वालों ने लात घूसों से मार के ये हालत कर दी। हम दोनो उन्हें जल्दी से हॉस्पिटल ले गए,मरहम पट्टी दवाइयाँ ये सब करते कराते रात के 8 बज गए रास्ते भर मैं मासूम कृष्णा के बारे में सोचती रही।दूर से ही बच्चे हमे देख के अपनी अम्मू से जा के चिपट गए पर कृष्णा? उसे क्या हुआ …वो अपलक अपने पप्पा को देखता रहा।गली मोहल्ले के लोग जायजा लेने पास आ गए ,औरतों की सुगबुगाहट तेज़ हो गई थी “देखना इसके कारनामे, अपनी फरमाइशों के लिए कैसे ज़िद करता है…जाने क्या खा के पैदा किया है माँ बाप ने…इससे तो अच्छा भगवान औलाद न दें। दस लोग ….दस बातें।
मुझसे न रहा गया मैंने किसी तरह कृष्णा को अपने पास बुलाया।
“ए कृष्णा! चल तेरे लिए पिचकारी और गुब्बारे ले के आते हैं चाहिए थे न तुझे?”मैंने उसकी ओर प्यार भरी बाँहे फैला दी।उसने आगे बढ़ के मेरी उँगली पकड़ी। बहने डबडबाई आँखों से घूरने लगी ,लालची कहीं का ये भी न देखता पप्पा की क्या हालत है।
दो कदम साथ चलने के बाद उसने मेरी उँगली झटक दी।क्रोध और मरती हुई इच्छाएँ पिघल के आँसू बन गालो पे ढुलक आये और वह सुबकते हुए बोल पड़ा “नही चाहिए गुब्बारे।”
“क्यों?”
” पानी भी कोई खेलने की चीज़ है का? आप ही कहती हो न पानी बचाना चाहिए…और पिचकारी तो कई हैं, कित रक्खी है अम्मा वो लाल वाली…पीली वाली…. कई थी न?”
मुहल्ले वाले जो कृष्णा के कारनामे देखने की प्रतीक्षा में थे वे ठगे से खड़े रहे,ये कृष्णा का कौन सा रूप था,जाने क्यूँ सबकी आँखे भींगने लगी थी और कृष्णा अपनी बिखरी बातों को फिर समेटने लगा “मेरी टीचर कहती है ज़्यादा मीठा खाने से दाँत सड़ जाते है देखो…. देखो अभी है ना मेरे दाँत मोतियों से।” और वह मुंह खोल के अपने सधे हुए दाँत दिखलाने लगा पर और अभिनय करने की ताकत उसमे न रह गई थी,हारा हुआ बालमन अपनी अम्मू के आँचल में सिमट के फूट फूट के रो पड़ा।
अम्मा बार बार उसकी बलैया लेती रही…दुलारती रही…. पुचकारती रही और बार बार कहती रही “मैं कहती न थी
मेरा बेटा सम्राट है…. सम्राट।उसके पप्पा के चेहरे की भी सारी शिकन दूर हो गई थी, और हो भी क्यों न उनका चपरगंजू बेटा आज सम्राट जो बन गया था।

आरती

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