सम्मान
निर्धन माँ-बाप का बेटा था सोहन। सोहन की पढ़ाई-लिखाई के लिए पिता समारू अहीर और माँ पुनिया ने न जाने कितने त्याग किए थे? समारू जीवन भर गॉंव के कृषकों के गाय-बैलों को चराता रहा। माँ आस-पास के गाँवों में सेर दो सेर दूध, दही और घी को बेचने के लिए गलियों की खाक छानती रही। बावजूद बेटे की पढ़ाई के लिए खर्च पूर्ति न कर सका तो पाँच बीघे पैतृक जमीन में से दो बीघे जमीन बेचकर सोहन को पढ़ाया-लिखाया।
माता-पिता के इस त्याग के फलस्वरूप सोहन धमतरी पॉलिटेक्निक में टॉप कर गया। कॉलेज प्रशासन ने सोहन को निमंत्रण पत्र भेजा कि वार्षिक सम्मेलन में सोहन को सम्मानित किया जाएगा। यह सुनकर सोहन के माता-पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
सोहन सम्मान प्राप्त करने के लिए एक दिन पहले पहुँचकर दोस्त के यहॉं ठहर गया। माता-पिता ने सोचा कि काम-काज तो जीवन भर लगा रहेगा, क्यों न वे लोग भी बेटे को सम्मान प्राप्त करते हुए देखें, यह सोचकर वे धमतरी जा पहुँचे।
सोहन के माता-पिता के पुराने और बहुत साधारण किस्म के पहनावे को देखकर उसकी गर्लफ्रैंड ने पूछा- “Who are they?”
सोहन बोला- “They are the family servent from my village.”
यह सुनकर माँ-बाप बड़े खुश हुए कि उनका अपना बेटा सोहन पढ़-लिखकर फर्राटे से अंग्रेजी बोल लेता है।
(मेरा सप्तम लघुकथा संग्रह : ‘दहलीज़’ से,,,)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखन के लिए
भारत भूषण सम्मान प्राप्त।