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26 Dec 2021 · 3 min read

सम्मान दो सम्मान लो (हास्य व्यंग्य)

सम्मान दो सम्मान लो (हास्य व्यंग्य)
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लल्ला बाबू और राजा बाबू दो अलग अलग जनपदों के रहने वाले नेता थे । दोनों की ही हमेशा से यह इच्छा रही थी कि उनका भी बहुत जोरदार सम्मान बाहर के किसी जनपद में हो। सौभाग्य से किसी तीसरे जनपद में जब कोई सम्मेलन हुआ और यह दोनों महानुभाव उस सम्मेलन में भाग लेने के लिए उस तीसरे जनपद में गए , तब दोनों की बातचीत हुई।
बातों बातों में लल्ला बाबू ने राजा बाबू से पूछा -“कुछ भी कहो भाई साहब ! सम्मान नहीं होता”
बस यह सुनते ही राजा बाबू का चेहरा प्रसन्न हो गया। बोले “भाई साहब मैं भी यही बात कर रहा हूं। सम्मान नहीं होता। लेकिन राजनीति में कोई भी चीज प्लेट में रखकर भेंट स्वरूप नहीं मिलती। यहां तो सब कुछ लड़ झगड़ कर, मारकुटैया करके ही लेना पड़ता है”।
जब दो समान विचारों वाले लोग एक साथ मिलते हैं तो रेस्टोरेंट में जाकर चाय और समोसा खाते हुए विचार विनिमय होता है ।यही हुआ। दोनों मिले।
लल्ला बाबू ने कहा “योजना बनाओ। बगैर योजना के केवल चर्चा से कोई लाभ नहीं है ।”
राजा बाबू बोले “बजट बनाना पड़ता है”।
लल्ला बाबू ने कहा” कितने का बजट समझते हो।”
राजा बाबू बोले” आजकल शाल भी ₹100 से कम का नहीं आता। सम्मान पत्र छपवाने में भी ढाई सौ ₹300 खर्चा हो जाते हैं। पढ़ने वाला तो, खैर चलो मुफ्त में मिल जाएगा। इसके अलावा फूल मालाएं भी₹200 की समझो। जब तक 10 लोग ना पहनाएं ,तब तक काहे का सम्मान! माइक का इंतजाम करना पड़ेगा और जलपान का कार्यक्रम होना चाहिए,बिना इसके आजकल कोई आता नहीं”
राजा बाबू को योजना तो पसंद आई लेकिन बोले “यह बताओ कि जगह का किराया कितने रुपए का बैठेगा ? अखबारों में खबर छपवाने के लिए कितना खर्च करना पड़ेगा?”
लल्ला बाबू सुनकर भौंचक रह गए। वह तो बहुत छोटी सी जगह पर साधारण से खर्चे में गुपचुप तरीके से सम्मान की प्लानिंग बना रहे थे। लेकिन अब राजा बाबू ने तो बढ़िया होटल का खर्चा अखबारों में प्रचार-प्रसार का खर्चा जोड़कर बजट को महंगा कर दिया था । राजा बाबू ने फिर आगे कहा” जलपान के मायने केवल औपचारिकता नहीं होनी चाहिए। पूरे शहर में प्रचार होना चाहिए कि प्रीतिभोज बहुत शानदार है ।बगैर इसके कोई नहीं आएगा । निमंत्रण- पत्र पर बड़े मोटे मोटे अक्षरों में लिखना चाहिए कि कार्यक्रम के उपरांत शानदार प्रीतिभोज का आयोजन भी है । “।
इस तरह दोनों में सारी योजना बन गई। बस अब प्रश्न केवल इतना था कि पहले किस का सम्मान हो ? राजा बाबू ने कहा” खर्चा मेरा, शहर आपका ,पहला नंबर सम्मान के लिए मुझे मिलना चाहिए”।
लल्ला बाबू चीखे” हम कोई धूप में बाल सफेद थोड़ी किए हैं ! हम तुम्हारा सम्मान करें और तुम उसके बाद शक्ल भी ना दिखाओ ! पहले सम्मान हमारा होगा”।
राजा बाबू बोले” पहले मेरा होगा”
लल्ला बाबू ने आव देखा न ताव एक चांटा जोर से राजा बाबू के गाल पर जड़ दिया। बस फिर क्या था, रेस्टोरेंट दंगल में बदल गया। घूँसों पर घूँसे , लातों पर लाते । सम्मान की वह ऐसी – तैसी हुई कुछ मत पूछो। भीड़ जमा हो गई । सब पूछ रहे थे- क्यों भैया ? किस बात पर लड़ाई हुई ? दोनों ने जाते हुए कहा “कुछ नहीं …बस लेन- देन का झगड़ा था “।
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लेखक: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर

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