“सम्भावना”
“सम्भावना”
लगता है
संवेदनाओं की चादर ओढ़कर
जिस दिन आदमी धमकेगा,
सत्य और सृजन
पृथ्वी में खुश होकर
अनन्त आकाश को चूमेगा।
“सम्भावना”
लगता है
संवेदनाओं की चादर ओढ़कर
जिस दिन आदमी धमकेगा,
सत्य और सृजन
पृथ्वी में खुश होकर
अनन्त आकाश को चूमेगा।