सम्बन्ध
परिवार दरख़्त की तरह,
एक जड़ से उग कर
शाख, पल्लव में फैलते जाते
बच्चे, युवा और बुज़ुर्ग,
सौमानस्य से रहते
बसेरा पाते साए में पथिक,
पशु-पक्षी, मधुप गुंजार करते
जब तक पनपती नहीं दुर्भावना,
वैमनस्य, संताप और इर्ष्या,
वृक्ष छतनार राजते,
क्रोध, प्रतिद्वन्दिता की
उठी हुई आंँधी में
डालें गिरतीं
पत्ते अंजान दिशाओं में उड़ जाते
तने से कटी डालें सूख जातीं
सूख जाते हैं पत्ते,
कभी पत्तल में बिंध कर
बीड़े में लिपट कर
बिक जाते हैं,
गिरे पत्ते कभी पनप नहीं पाते हैं
जड़ों से जुड़े तने,
तनों पर आश्रित पल्लव
बचपन, यौवन, बुढ़ापा देखते हैं
जब टूटते हैं,
नए बीजों को बो चुके होते हैं
पुराने पत्ते,
नई पीढ़ी के लिए
जगह छोड़ते हैं
तृप्त, कर्त्तव्य मुक्त हो
महा प्रयाण करते हैं
कितने ही वृक्ष,
छतनार नहीं
एकांगी रहते हैं
बिछड़े हुओं को
याद करते, इनी गिनी
शाखों को बचा पाते हैं
जिन्हें अपने पीछे
हरा भरा छोड़ते हैं …