सम्बन्ध
ज्यों मकड़ी जाल बुने
हम बुनते सम्बन्ध
उलझ पुलझ उनमे फंसे
स्वीकारे प्रतिबन्ध।
आशा सुख की संसार मे
मात्र निराशा है
भौतिकता में आनंद बस
एक दुराशा है।
पहले यह सब सुख लगे
मन को अमृत समान
पेर यह घुन की भांति है
इनको तू विष जान।
त्याग राह है मुक्ति की
उसको तू पहचान
दिलवायेग वही तुझे
शांति और सम्मान।