समीक्षा लेखन भी अत्यावश्यक है !
समीक्षा लेखन भी अत्यावश्यक है !
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समीक्षा लेखन भी अत्यावश्यक है !
सॅंवरता इससे कवि का लेखन है !
सृजन किसी रचना का जब होता !
कवि का मनोबल डांवाडोल ही रहता !!
भले ही सृजन रचना का सुंदर ही होता !
फिर भी इसके प्रति वो आश्वस्त ना होता !
उस रचना को किसी का समर्थन जो मिलता !
कवि का अंतर्मन बहुत ही गदगद हो जाता ! !
उसकी सृजनशीलता भी अत्यधिक बढ़ती जाती !
उसके मन में अनेकानेक भावनाएं उमरती जाती !
और वो भावनाओं में आसमान में उड़ने लगता !
मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता !!
और कवि की रचनाधर्मिता विकसित होने लगती !
आत्मविश्वास उसका चरम पे विचरणशील होता !
अंतर्मन में सुंदर विचारों का प्रादुर्भाव होने लगता !
साहित्य के प्रति अनुराग उसका और बढ़ता जाता !
काव्य सफ़र में वो दिन-प्रतिदिन प्रगतिशील रहता !!
पर रचना की समीक्षा में समालोचना होनी चाहिए !
गुण-दोष का अवलोकन कर ही मंतव्य देनी चाहिए !
रचना की झूठी प्रशंसा भी नहीं कभी करनी चाहिए !
गूढ़ अवलोकन कर सारगर्भित तथ्य ही लिखने चाहिए!!
समालोचना जो होती रहेगी तो लेखन में सुधार होगा !
हरेक रचनाकार को रचना में कमी का एहसास होगा !
साथ में व्याप्त गुणों, खासियतों का भी दीदार होगा !
सीखकर, अनुभवों से अगला रुख़ अख्तियार होगा !!
इसीलिए काव्य सृजन में उत्तरोत्तर वृद्धि के वास्ते !
हम सब चल पड़ें रचना की समीक्षा करने के रास्ते !
सभी रचनाकारों का भला ऐसे ही सब कर सकते !
रचना सृजन के साथ समीक्षा साथ-साथ चल सकते !
समीक्षा लेखन को कभी नजरअंदाज़ नहीं कर सकते!!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 01-08-2021.
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