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समारोह को पंखुड़ियॉं, बिखरी क्षणभर महकाती हैं (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
समारोह को पंखुड़ियॉं, बिखरी क्षणभर महकाती हैं
अगले ही क्षण दृश्य बदलता, फिर कूड़ा कहलाती हैं
2
कभी सुशोभित थे पेड़ों पर, ताजे-मोटे पत्ते जो
उन्हें गाड़ियॉं कूड़े की, पतझड़ में भर ले जाती हैं
3
दो दिन के जीवन को आओ, क्षमता में भर कर जी लें
सॉंसों की गतियॉं फिर धीमा, सब का हाल बताती हैं
4
जाने कैसे शहद चूस लेती हैं यह पंखुड़ियों का
एक करिश्मा है छत्ता, मधु का मक्खियॉं बनाती हैं
5
पर्वत से नदियों का चलकर, सागर में फिर मिल जाना
एक अनवरत जीवन-क्रम है, नदियॉं यह बतलाती हैं
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451