समाये रहें रंग…
लो आ गयी रंगपंचमी आज
पर फीका है जीवन का रंग
नहीं पास में
स्थायी रोज़गार का रंग
और न ही जीवन में रस भरने वाली
एक सौम्य-संगिनी का संग
यानि सब कुछ बदरंग
फिर भी जीवन यहीं ख़त्म नहीं होता
अतः जो कुछ हमें सहज प्राप्त है
उसी में ही झूमना-गाना होगा हमें
जिससे समाये रहें हमारे ह्रदयांचल में
आशा/विश्वास/आस्था के रंग
और बढ़ते रहें हम
अनवरत् उस पथ पर
जिस पर बढ़ते रहना ही
हमारी नियति है
मंज़िल का क्या?
वह तो मिलेगी ही/
आज नहीं तो कल/
आखिर जन्म का पथ
पहुँचता है
मृत्यु की मंज़िल पर
कभी न कभी
अतः उस अंतिम सत्य को
स्वीकारते हुये
लगाना होगा हमें अपने-आपको
उस कर्म में जो कि सहज प्राप्त है हमें
कभी-न-कभी
भरेगा उसमें खुशी का रंग
जी हाँ,खुशी का रंग
Happy Rangpanchmi
*सतीश तिवारी ‘सरस’