‘समानता’
समानता
संविधान की शोभा बनी समानता,
आज कोई नही, इसे कहीं मानता;
चौदह की ये , संवैधानिक चतुराई;
अब हो गई है , ये सिर्फ पीर पराई;
जब है , एक चौदह एक सविधान;
फिर क्यों, एक देश अनेक विधान;
वेतन अलग, पदधारक एकसमान;
देशी पेंशन की ही, जब बात आए;
कई भूखे मरे,कोई चार पेंशन पाए;
चौदह का भी,न्यायालय रखवाला:
इन मुद्दों पे मौन है,कालाकोटवाला;
जो बनाए,नियम और कोई कानून;
उसको अपनी ही चिंता,अपनी धुन;
न दिखे, अब कहीं संवैधानिक गुण;
अब तो जाति देख ही,नौकरी मिले;
निज गुप्त कर्म देख कर,रोटी मिले;
धर्म देख कर ही , बटता कहीं पानी;
यही है , देशी समानता की कहानी।
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स्वरचित सह मौलिक:
……✍️पंकज ‘कर्ण’
…………..कटिहार।।