समाज की डार्क रियलिटी
समाज की डार्क रियलिटी
पैसा और सफलता की ये अजब कहानी है,
औकात बदल जाए, ये उनकी मेहरबानी है।।
हैसियत से परे, सबकुछ मुमकिन है यहां,
सच कहूं तो इज्जत भी बिकती दुकान में यहां।।
जिसके पास दौलत, वही है बड़ा इंसान,
गरीब की बातें सुनता कौन, वो तो है बेनाम।।
रिश्ते भी झुक जाते हैं पैसे के भार से,
सच्चाई दब जाती है चमचमाते शृंगार से।।
खुद्दारी बिक जाती है, मजबूरी के बाजार में,
आदमी खो जाता है, सपनों के पहरेदार में।।
सफलता का मतलब अब दौलत से जुड़ गया,
मानवता का मूल्य जैसे कहीं दूर उड़ गया।।
जिनकी जेब खाली, उनकी बात अधूरी है,
समाज के इस खेल में ये कैसी मजबूरी है।।
पैसा और सफलता, ये सबकुछ छीन लेते हैं,
औकात को बदलकर, हैसियत में ढाल देते हैं।।