समाज का मुखौटा
समाज में बना हुआ इंसान, सबको लायक, सबको भान। बोलता मीठा, हँसता जगमगाता, हर मुख पर मुस्कान बिखेरता।
पर बनता हुआ इंसान, कभी ना किसी को प्यारा। नकाब ओढ़े छुपाता चेहरा, दिल में छिपाए घहरा।
बनावटी प्यार, दिखावटी बातें, हर पल खेलता ये हार-जीत की बातें। खुद को ऊँचा, दूसरों को नीचा, इस भ्रम में जीता ये जीवन फीका।
पर सच तो यह है, नकाब नहीं छुपा सकती सच्चाई। एक दिन गिर जाएगा मुखौटा, नग्न हो जाएगा ये बनावटी चेहरा।
इसलिए बनो सच्चा इंसान, दिल में हो जो, वो ही दिखाओ। बनावट की दुनिया छोड़ो, अपनी असलियत से दुनिया को हिलाओ।