समसामयिक चुनावी कविता
समसामयिक चुनावी कविता:
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खटखटाते द्वार पर घंटी बजाते लोग हैं
आज दोनों हाथ जोड़ें मित्रता के योग हैं
देखिये मुन्ना खड़ा है आपका ही लाल है
आपके अनुसार ही यह दे रहा स्वर-ताल है
आपका आशीष चाहे चाहता यह प्यार है
आपके परिवार के हर वोट का हकदार है
बह रही थी जितनी उल्टी यह बदल देगा हवा
शाम को कल्लू मिलेगा आपकी लेकर दवा
साथ होगा कुछ मसाला आपके अनुसार ही
फर्ज पूरा कर रहा यह मत समझिये भार ही
लोभ की इस यात्रा में मित्र जंक्शन आ गया
स्वार्थी मन कह उठा तब लो इलेक्शन आ गया
सुन व्यथित कोमल हृदय था उस घड़ी ऐसा लगा
आज तो हद हो गयी है क्या अभी ही दूं भगा?
संतुलित कर तब स्वयं को मैं गले ही लग गया
कह उठा एकदम प्रकटतः चाशनी में पग गया
है नहीं उसकी जरूरत स्वाद से लबरेज हूँ
हो गया मधुमेह था सो कर रहा परहेज हूँ
आप को ही वोट दूंगा आप ही आधार हैं
आप हो निश्चिंत जाएँ आप रिश्तेदार हैं…
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रचनाकार : इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
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