समर्पण
तुम संपूर्ण देश की आशा हो ,
तुम प्रति प्रस्फुटित भविष्य की अभिलाषा हो।
तुम साहस ,सौहार्द का मापदंड हो ,
हे वीर !तुम्हारी आन समर्पण हो ।।
तुम हो ज्वाला हर अत्याचारों की,
तुम उपचार हर अबला के घावों की।
तुम हम बहनों की राखी हो ,
तुम तेज हो हर माँ के आहों की ।।
हे शौर्य ! तुम्हारा लक्ष्य समर्पण हो ।
हे वीर ! तुम्हारी आन समर्पण हो ।।
जो प्रहार किये हमपर वो तुम भूलो नही ,
विष कोई निज शब्दों में तुम घोलो नही ।
सिर जो उठ जाये उन्हें वहीं पर तुम काट डालो,
तुम्हारे भाइयों से किया अभद्र व्यवहार तुम भूलो नही ।
उनका कृत्य अक्षम्य है
तुम्हारे हर वाक्य में गर्जन हो ।
हे वीर ! तुम्हारी आन समर्पण हो ।।
निहारिका सिंह??