समर्पण
कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए ,
अनथक मेहनत और सतत लगन चाहिए ,
प्रेम समर्पण माँगता है ,कार्य मेहनत माँगता है ।
लेकिन ,समर्पण दोनों में जरूरी है ,
सफल होने के लिए अपना सुख चैन नींद
सब समर्पित करने पड़ते हैं,
और प्रेम में स्वयं को समर्पित करना पड़ता है,
जनून दोनों में होता है ।
द्वापरयुग की बातें हो नहीं सकती,
क्योंकि ,हम हालात से मज़बूर हैं ,
छल-कपट-फरेब की दुनिया स्वार्थ सिर चढ़ बोलता है ।
राधा – कृष्ण का प्रेम ,है द्वापर युग की कहानी ,
आज तो झूठ पर ग्रन्थ रचना हो जाती है ।
आज प्रेम व कर्तव्य निभाना नहीं है आसान,
सामाज के ठेकेदारों के बंधन हैं हजार,
जब बात चुनने की आती है, कर्तव्य बाजी मार जाता है ,
प्रेम बेचारा समर्पित हो जाता है ।
फिर गीता ज्ञान काम आता है ,
कर्म कर फल की इच्छा न रख …
इंसान हैं हम ,सही गलत के चक्र में फँस जाते हैं
संकट आने पर प्रभु याद आते हैं…
प्रभु की माया प्रभु ही जाने
हम तो अपना जीवन सफल बना लें ।
कुछ करना है तो स्वयं अन्तर्मंथन करो,
अपने अंतर्मन को टटोलो ,
कुछ गुथियाँ स्वयं सुलझ जायेंगी ,
कुछ प्रभु तक भी पहुँच जायेंगी।
स्वयं पर विश्वास है सबसे बड़ी ताकत ,
हर क्षेत्र में पहुँचा देगा सबसे ऊपर ,
कोई दुविधा न मन को तड़पा पायेगी,
जीवन में सुख-शान्ति आयेगी ।
सुनो सबकी, करो मन की ,अपने गुरू स्वयं बन जाओ
आज सहायक कम विनाशक ज्यादा ,
अपना दुख न बाँटो ज्यादा ,बाँट सको तो खुशियाँ बाँटो ,
कुछ प्रेरणा स्रोत बन जाओ।
अपने प्रभु पर करो विश्वास,
सफलता मिलेगी ,रहती आस।
नीरजा शर्मा