समर्पण…
ये हसरत है कि दिल में उतर जाएं हम
है इश्क़ आग का दरिया, तो पार कर जाएं हम…
दर्द जमाने ने तुमको और मुझको दिए
क्यों ना मिलकर, इस बात से मुकर जाएं हम…
दोनों खुश हैं एक- दूजे की खुशी के लिए
फिर चाहे राहों में, टूटकर बिखर जाएं हम…
ना समझे दुनिया तो ग़म और गिला कैसा
ज़िस्म चीज क्या है, रूह तक सफर कर जाएं हम…
पाना जिसे प्यार कहते हैं, उन लोगों को
समर्पण होता है क्या, ये सबक देंकर जाएं हम…
ज़रूरी नहीं कि रस्में सभी, अदा हो प्यार में
रिवाज़ो की कुछ लकीरों, को तो मिटाकर जाएं हम…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’