समय
कविता :- ” समय ”
एक चित्रकार ने चित्र विचित्र बनाया।
पैरों में उसके लगा दिए पर।
बालों से उसका ढक दिया सर ।
एक दर्शक ने चित्र देखा ।
चित्रकार महोदय से पूछा होकर कर मुखर।
महोदय आपने यह चित्र किस विषय का बनाया है।
बालों से ढका उसका सर है ।
पैरों में लगे हैं पर ।
ऊपर से पीछे से गंजा है।
बताओ यह किस बात की संज्ञा है।
चित्रकार दर्शक से बोला होकर के वक्ता प्रखर।
यह समय का चित्र है ।
समय हर व्यक्ति के पास जाता है ।
लेकिन हर व्यक्ति उसे पहचान नहीं पाता है।
व्यक्ति जब समय को पहचान नहीं पाता है।
समय मुड़कर चला जाता है।
जब तक उसके समझ में आता है।
यह समय है।
उसे पकड़ने की कोशिश करता है।
लेकिन समय के पीछे चोटी भी नहीं होती है।
आधा सिर गंजा होता है।
वह समय को पकड़ नहीं पाता है।
वह उड़ जाता है।
इसलिए समय के साथ चलो।
न समय के आगे चलो।
न समय के पिछे चलो ।
जो चलते हैं समय पर।
वही जीत जाते हैं।
जो चलते हैं समय पर।
वही प्रीत पाते हैं।
होता है नाम उन्ही का।
इस जहान में ।
जो समय को जीत जाते हैं।
चतरसिंह गेहलोत
निवाली बड़वानी म,प्र,
451770
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