समय
समय
समय से
न टक्कर लेना
समय बड़ा ही शक्तिमान।
संग चलने में ही सार है
समय है
प्रबल गतिमान।
सूर्य चन्द्रमा सारी प्रकृति
समय चक्र की दासता से
मुक्त कहाँ रह पाई
ओ प्राणी
पानी के बुलबुले
समय से टक्कर की क्यों ठानी
समय है प्रवाह
दुनिया है आनी-जानी
गतिमान
रहने से ही तो
श्वास-श्वास आता उल्लास।
ठहराव है अंत
जीवों में सबसे विवेकी
तुझे नहीं है क्या आभास?
आलस्य और अकर्मण्यता को लगाकर गले
जो न समय के संग चलेगा ।
प्रतिपल है रेत सी फिसलन
पछता कर
फिर हाथ ही मलेगा।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©