समय
#समय
आज भी नहीं रुका वो सदियों के जैसे
ना उम्र ना थकान ना मोह और ना द्वेष
ना वाणी ना स्वाद ना चाह ना कोई भेष
कई बाते, यादे, इंसान देकर और लेकर
बीती बातों और उम्र का नजराना देकर
तोड़ते हुये सुख दुख की यादो के रैसे
आज भी नहीं रुका वो सदियों के जैसे
तुम जैसे कई उसकी झोली बड़े हुये
झंझावत,बसंत ,ग्रीष्म यहीं पड़े हुये
राम-कृष्ण को देख कल्की इंतजार मे
ना आया कोई फर्क कभी व्यवहार मे
वो चुन लेता है किरणो को सूर्य बिंब मेसे
आज भी नहीं रुका वो सदियों के जैसे
कई भीष्म -भीम – सिकन्दर को समा कर
लम्बी यादे और भिज्ञ-अभिझ ज़मा कर
चल रहा है नित्य प्रति नई किरणो को देकर
कई युद्ध कई संधि जन्म-मरणो से लेकर
कई रावणो – कंशो को काल ग्रास बनाकर
जीवन को मृत्यु, मृत्यु को श्वास दिलाकर
खुद को संभाले हर पहलु मे जैसे तैसे
आज भी नहीं रुका वो सदियों के जैसे
भय,दर्द,ख़ुशी,जय-पराजय संचित कर
सत्य को विजय और झूठ को वंचित कर
है काल जो कालंतर से है सत्य पथ पर
सत्य की जीत और नित न्याय के रथ पर
विलम्ब सही अंधेरो से प्रकाश अवश्य होता है
अनहोनी महाभारत को मजबूरी मे रोता है
कैकेयी के वचन वेदना को किया सहन कैसे
आज भी नहीं रुका वो सदियों के जैसे
…ये वक्त सदैव नहीं रहेगा