समय को भी तलाश है ।
तू खुद की खोज में निकल,
तू किस लिए हतास है
तू चल तेरे वजूद की,
समय को भी तलाश है ।।
जो लिपटी तुझसे बेड़ियां,
बना ले इनको वस्त्र तू
ये बेड़ियां गलाके ही,
बना ले इनको शस्त्र तू ।।
चरित्र जब पवित्र है,
तो क्यों है ये दशा तेरी
ये पापियों को हक नहीं,
कि लेंगे परीक्षा तेरी ।।
जलाके भस्म कर उसे,
जो क्रूरता का जाल है
तू आरती की लौ नहीं,
तू क्रोध की मशाल है ।।
चुनर उठा के ध्वज बना,
गगन भी कप–कपाएगा
अगर तेरी चुनर गिरी,
तो एक भूकंप आएगा ।।
तू खुद की खोज में निकल,
तू किस लिए हतास है
तू चल तेरे वजूद की,
समय को भी तलाश है ।।
©अभिषेक पाण्डेय अभि