समय को दोष देते हो….!
मुहब्बत की ख़ता की है,
बता हमने बिगाड़ा क्या…!
समझते क्यूँ नहीं हमको,
हमी को दोष देते हो…!
नहीं रुकते बदलते हो,
क्यूँ बार-बार ये मंज़िल…!
सँभलना ख़ुद नहीं भाता,
जहाँ को दोष देते हो…!
तुम्हारा मनचला ये दिल,
रहे अपने ही मद मर चूर….!
ख़ुदी का दोष है सारा,
ख़ुदा को दोष देते हो…!
समझते हो ख़ुदा ख़ुद को,
कभी ख़ुद से मिले को क्या..!
खड़े हो जिसके बलबूते,
उसी को दोष देते हो….!
हुए जाते हो तबाह तुम,
सुनो अपनी ही फ़ितरत से..!
बदलना ख़ुद नही आता,
समय को दोष देते हो….!
© डॉ० प्रतिभा ‘माही’ 【8800117246】