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28 Aug 2021 · 1 min read

समय का चक्र !

इस ब्रह्मांड में,
न जाने कितने लोग आकर,
अपना जीवन जीकर चले गए।
परिस्थितियों के प्रभाव में,
थोड़ा थोड़ा सब यहां छले गए।

कुछ लोग बहुत अच्छे थे,
कुछ लोग थोड़े बुरे भी थे।
अपने जीवन काल में,
हर कोई अपना कुछ छोड़ गया,
धारा को थोड़ा थोड़ा मोड़ गया।

आना जाना यहां निरंतर ही,
अनवरत सादा लगा रहा।
कोई यहां संत बना रहा,
कोई जीवन भर ठगा रहा।
कोई बुढ़ा होकर गया,
कोई ज़वानी में चला गया।

काल पर प्रभाव किसका चला,
महाकाल को किसने यहां छला।
सांसों की डोर जिसकी जितनी,
उतना संबंध यहां वो निभा गया।
समय का पहिया चलता रहा,
जीवन मोम बन पिघलता रहा।

Language: Hindi
248 Views
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